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सुनो | ऑनलाइन बुलेटिन

©अमिता मिश्रा

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़


 

 

सुनो !! तुम रावण नहीं राम बनना

तुम सीता का हरण नहीं वरण करना

 

तुम छल, बल से स्त्री को मत पाना

तुम प्रेम से उसका मन जीत जाना

 

तुम मर्यादा की सीमा रेखा मत लांघना

मर्यादा में रहकर करना अनन्त प्रेम करना

 

तुम उसे छप्पन भोग, पकवान मत देना

उसे अपने हाथों से सूखी रोटी खिला देना

 

तुम परस्त्री, परनारी पर नजर मत डालना

अपनी भार्या के सिवा सभी को देवी मानना

 

तुम उसे सोने का महल भी मत देना

उसे देना छोटी सी कुटिया जिसका

तिनका -तिनका बना हो प्रेम और विश्वास से

 

तुम उस पे अपने दंभ का अधिकार मत जताना

तुम अपने प्रेम और समर्पण का हक़ जताना

 

तुम उसे सोने का हिरन भी लाकर मत देना

अपने निर्मल मन का स्वर्ण सा हृदय देना

 

जब वो मुसीबत में हो परेशान हो तब

प्रश्न मत करना अग्नि परीक्षा मत लेना

 

तुम पूर्ण विश्वास के साथ उसका साथ देना

उसकी प्रतीक्षा को साकार प्रेम प्रगाढ़ कर देना

 

तुम अधर्म पथ पर चलकर लंका मत जलने देना

धर्म और संस्कार से घर को अयोध्या धाम कर देना

 

ज्यादा कुछ नहीं है एक स्त्री की इच्छा

बस उसे निश्छल प्रेम और विश्वास देना

 

तुम एक माँ को कौशल्या माँ बनाना

भार्या को सीता ताकि दोनों तुम पे गर्व कर सके

 

तो तुम रावण सा चरित्र नहीं राम सा पवित्रता रखना

तुम रावण नहीं मर्यादा पुरषोत्तम राम बनना मेरे राम!

 

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