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खामियां औरों की ढूंढते ढूंढते…

©प्रा.गायकवाड विलास 

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

 

खामियां औरों की ढूंढते ढूंढते सारी उम्र निकल जाती है,

वही झूठे चेहरे भी दर्पण में देखकर ख़ुद पे ही नाज़ करते है।

 

महलों में रहनेवाले भी उसी श्मशान में जाते हुए मैंने देखा है,

फिर किस बात का घमंड जीते जी लोग इस संसार में करते है।

 

बुराईयां छोड़ जाओगे तो,ये ज़माना मरे हुए को भी बहुत कुछ कहता है,

लेलो कुछ दुवाएं भी,उसे ये ज़माना यहां सदियों तक याद करता है।

 

गर जलाना ही है तो,अपने मन का अंहकार जलाकर देखो,

चमकने वाले सूरज को भी,मैने यहां हर दिन डुबते देखा है।

 

जिनके ख़ून में है सच्चाई,वही लोग इस संसार में अकेले है,

जहां भी देखो बेईमानी की भीड़ में तो,ये सारा जहां डुबा हुआ है।

 

जो उड़ते है आसमां में,उन्हें भी यहां मिट्टी पर ही आना है,

इस संसार में क्या राजा और क्या रंक,एक ही मिट्टी में वो दफ़न हुए है।

 

खामियां औरों की ढूंढते ढूंढते सारी उम्र निकल जाती है,

बांट लो ख़ुशी के पल,ये जिंदगी फिर कब लौट आती है।

 

Gaikwad Vilas, Latur, Maharashtra
गायकवाड विलास

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