संगी …
©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ी रचना
सबले जादा जेकर जरुरत
जिनगी भर पड़थे
जेकर रहे म दुख पीरा
जम्मो हर हरथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे
जेहर मोर नानकुन गलती ल
मया दुलार से समझाथे
जेकर रहे से हिम्मत आथे
जब सामने वोहर रहिथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे
उमर चाहे कुछु रहय पर
बिचार एक बरोबर रहिथे
ऊँच नीच ल जानय नहीं
जहुरिहा मन सब कहिथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे
एके थारी मा बैठ के खाथे
हिस्सा दुनो के बरोबर आथे
एक अगर नई खावय तब
दूसर घलो ह भुखन रहिथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे
एक गौटिया एक गरीबहा
तभोच ले एकसंग चलथे
जलवईया कतको जलथे
तभो कृष्ण सुदामा रहिथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे
बिपदा म कोनो काम नई आवय
अइसन बखत म काम आथे
सब जग हर अंधियार लगथे
ओतका बेरा ढांढस बाँधे रहिथे
अइसे मितवा ल संगी कहिथे …