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मंत्री विजयवर्गीय ने कहा देश के 1000 से ज्यादा मंदिरों को मुगलों ने तोड़ा, उनके प्रति लोगों की आस्था आज भी है.

इंदौर

मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya)ने इंदौर (Indore) में ज्ञानवापी (Gyanvapi) मामले पर बयान दिया है. विजयवर्गीय ने कहा कि यह बात बहुत साफ है कि इतिहास में बहुत सी चीज लिखित नहीं है. हमारे देश के 1000 से ज्यादा मंदिरों को मुगलों ने तोड़ा, उन मंदिरों के प्रति लोगों की आस्था आज भी है. उन्होंने कहा कि वह पीढी तो चली गई, लेकिन अब हमें समझ आ रहा है कि इन मंदिरों को तोड़ा गया था और मुगलों की ओर से लूटा भी गया था, क्योंकि पहले हमारे यहां परंपरा थी कि मंदिरों में ही खजाना होता था, इसलिए उनको तोड़ा और लूटा भी गया.

कैलाश विजयवर्गीय ने कहा "इतिहास इस बात का साक्षी है. मुझे लगता है कि सारे प्रमाण देख कर ही अदालत ने फैसला किया है. इससे देश में वे लोग जो भगवान में बहुत आस्था रखते है उनमें बहुत खुशी है." इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय पहली बार इस तरह का बयान नहीं दे रहे थे. इससे पहले भी कैलाश विजयवर्गीय अपने बयानों को लेकर चर्चाओं में रहे हैं. चुनाव लड़ते वक्त उन्होंने मंच से कहा था की पार्टी ने मुझे ऐसे ही मध्य प्रदेश में नहीं भेजा है. पार्टी में मुझे कोई बड़ी जिम्मेदारी देगी.

बयानों को लेकर पहले भी चर्चा में रहे हैं कैलाश विजयवर्गीय
इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय को नगरीय प्रशासन मंत्री बनाया गया. वे कई बार अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं. वहीं इंदौर में डेंटल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ने एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि किसी भी सरकार के लिए फाइनेंस मिनिस्ट्री सबसे महत्वपूर्ण होती है. वित्त मंत्रालय महिलाएं चलाती हैं. घरों के अंदर भी फाइनेंस का काम महिलाओं के पास होता है. महिलाएं घर चलाती हैं.

एमपी के मंत्री ने कहा, "मैं कभी-कभी मजाक में कहता हूं कि मेरी बाजार में कितनी भी साख हो. घर में तीन हजार रुपये की ही है." उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा था कि आज भी मुझे मेरी पत्नी तीन हजार रुपये से ज्यादा नहीं देती है. पैसे खत्म हो जाए तो पत्नी बोलती है कि तुमने तीन हजार इतनी जल्दी खत्म कर दिए. मैं कहता हूं कि चार-पांच मंदिर गया था. इस पर वो कहती है कि क्या वहां 500-500 रुपये के नोट चढ़ा दिए तुमने. कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि मैं आपको फाइनेंस का मैनेजमेंट बता रहा हूं.


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