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मेरा स्वदेश | ऑनलाइन बुलेटिन

©प्रीति विश्वकर्मा, ‘वर्तिका’

परिचय- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश.


 

 

नदियों का संगम, कई देता हिमालय है पहरा

कलरव करते पंछी, कई होता है सवेरा सुनहरा

 

भिन्न भिन्न धर्मों की, हिन्दुस्तान एक पहचान

विभिन्न ॠतूयें संजोये, ये पुण्य धरा है महान

 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, सारे धर्मों को सम्मान मिलें

भूल सारे शिकवे गिलॆ, हिन्दू मुस्लिम यहांगलें मिलें

 

ईद की सेवंई, दिवाली की गुझिया, खा हम बड़े हुए

कई जले दीए खुशी के, कही 2 दिल गले मिले हुए

 

ऐसी पावन भूमि है भारत, प्रत्येक धर्म कॆ दीए जलें

यहीं जन्में राम अयोध्या में, गोद यशोदा कान्ह पलें

 

प्रेम प्रतीक ताज बना, शिमला की ठंड़क लुभाती है

भाती खुश्बू माटी की, हल्की खट्टी दही सुहाती है

 

झांसी ने युद्ध लड़ा, रानी पद्मावती ने जौहर किया

प्रीत हुई राधेकृष्ण, गई राम संग वनवास सिया

 

भारत का इतिहास है ऐसा, स्वर्णिम पन्नों पर लिखा गया

विविध संस्कृतियों का मेल, आपस में समा गया।।

 

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