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फ़रिश्ते जमीं पर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©प्रीति विश्वकर्मा ‘वर्तिका’ 

परिचय- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश.


र्तू एक चंचल और नटखट स्वाभाव की प्यारी सी बच्ची थी , जिसे अपनी दादी जी से राजा रानी,  जादूगर और परियों की कहानियाँ सुनना बहुत पसन्द था।

 

वह अक्सर परियों की बातें करती और जैसे कहानियों में परियां बच्चों की इच्छायें पूरी कर देती थी उसे लगता था कि वास्तव मे भी ऐसा होता है।

 

वह यह बात अपनी माँ से अक्सर पूछती कि क्या सच में परियां जमीं पर उतरकर बच्चों के विशेज पूरी करती है???

 

और उसकी भोली माँ , उसका दिल रखने के लिये हमेशा कह देती थी कि हा वर्तू आती है और बच्चों की सारी इच्छायें पूरी करती है।

 

अब क्या था,,,,  नन्ही बच्ची रोज रात को सोने से पहले अपनी फ़रमाईशे बताने लगी  और अजीब बात तो ये थी कि उसकी फ़रमाइश की हुयी चीजें उसे रोज सुबह उठने से पहले ही बिस्तर पर मिल जाया करती और साथ में होता एक चमकीला सा लेटर, जिसमें कुछ कार्टून और परियों की तस्वीरें और कुछ प्यारे प्यारे खूबसूरत से छोटे छोटे खिलौने होते थे ।

 

अब तो वो प्यारी मासूम बच्ची हमेशा परियों के बारें सोचती और खुश होती थी और सुबह सुबह तो वह चहकती रहती थी। अपने दोस्तों को बताती कि रात को परियाँ और फ़रिश्तॆ उसे देकर जाते है कभी टैडी, कभी चाकलेट, कभी कोई उसकी प्रिय मीठाई या जो कुछ उसने मांगा होता और उसे तो सबसे ज्यादा खास होता था। वो लेटर हाँ वही चमकीला छोटे खिलौनॊ वाला।

 

आज सुबह उठी लेकिन बच्ची उदास थी क्योंकि आज ना ही उसकी विश पूरी हुई थी और ना ही वो चमकीला लेटर मिला उसकों आज पूरा दिन उसके चेहरे पर बारह बजे हुये थे।  ना घर में, ना स्कूल मे खुश रही ना घर में चकह रही थी उसकॊं बस इस बात का मलाल था कि आज रानी परी ने उसकी पसन्द की चीजें क्यूँ नही भिजवाई और फ़रिश्तॆ उसे रखने क्यूँ नहीं आये।

 

दिन बीत गया, देर रात तक वो जागती रही उसॆ आज पता चला कि उसके पापा पिछले कई दिनों से बहुत ही ज्यादा लेट घर आते है,,,, आज उसने ये जाहिर नही किया कि वो जाग रही है बस वो चुपचाप सब सुन और देख रही थी…. उसके पापा आये उसके माथे को चूमा और हाथ मुँह धोने चले गये।

 

माँ ने खाना निकाला और पिताजी से खाना खाते वक्त पूछा… लाये हो? वर्तू, कई दिन से उदास रहती है, किसी से बात नहीं करती ।

 

पिताजी :- हाँ कई दिन extra duty कर रहा हूँ ताकि ला पाऊँ , आज ले आया अपनी बिटिया के लिये साईकिल।वही जो उसने पसन्द किया था।

 

माँ बाहर से साईकिल लेकर आती है और उसे पैक करके थोड़ा डॆकोरेट करके रख देती है फ़िर वही चमकीले कागज और लिफ़ाफ़े निकालकर लेटर लिखती है और कई खूबसूरत खिलौने उसके साथ रख देती है।

 

फ़िर वो सोने चली गयी और नन्ही वर्तू , ये सब देख रही थी ।

 

मन मन ही मन सोच रही थी, मेरी खुशियाँ पूरी करने वाले फ़रिश्ते कोई और नहीं मेरे मम्मी पापा है । उसकी आँखें नम थी कि उसके पापा उसकी विशेज पूरी करने के लिये तीन दिन से उसके सोने के बाद आते थे और मम्मी रात को जागकर इतना कुछ करती थी । सोचते सोचते वो कब सो गई, उसे पता नहीं चला ।

 

वो सुबह देर से उठी,  उसके सामने पहले के जैसे उसकी विशेज पूरी हो गई थी । लेकिन वो दौड़कर अपने पापा मम्मी के गले लग गयी और बोली आपने ये क्यूँ नही बताया कि फ़रिश्ते जमीं पर ही होते है वो कोई और नहीं मम्मी पापा होते हैं ।

 

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