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नातेपाक | ऑनलाइन बुलेटिन

©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”

परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र


 

जल्वा देखा आखोने जो मदिना जाकर आये है।

नबी ने गीज़ा खाई थी वो खजूर खाकर आये है ।।

 

अल्लाह सभी की मुरादे ऐसी ही पुरी करना जरूर।

मक्का हज्जे बैतुल्ला का सर्फ जो पाकर आये है।।

 

इबादत तो किस्मत से जो जैसी बनी करके आ गये।

माना नबी की चौखट पर उन्ही के चाकर आये है।।

 

निस्बत और मोहब्बत मुस्तुफा से वो मदिना जाते ।

अपनी अकीदत का नजराना वहां चढ़ाकर आये है।।

 

हाथ उठाकर मांगी दुवा सभी हाजियों ने वहां पर ।

झेण्डा ईमान का वहां सभी तो उठाकर आये है ।।

 

मदिना की जमीन में खाके सूपूर्द हुये वहां जो भी।

अपना मकान जन्नत में इस तरह बनाकर आये है ।।

 

रोजा नमाज जकात सारे अरकान पूरे किये यकीनन।

जल्वा ताजदारे मदिना दिल में बसाकर आये है ।।

 

शहज़ाद अपने तकदीर में मालिक लिख दे मदिना वो।

येअर्मान लिए दुनिया में आका कसम खाकरआये है।।

 

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