नयन तेरी अदभुत लीला | newsforum
©सरस्वती साहू, (शिक्षिका), बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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मैं चली थी गम छुपाने, अंतस पर सारे पीर लिए
नैनों ने अश्रु भर -भर के, सारे दु:ख को प्रकट किए
हृदय ने पीड़ा अनंत सहे, नैन तू क्यों न सह पाती
छलका कर नयनों से नीर, पीर हृदय का दिखलाती
नयन तेरी अदभुत लीला, बिन बोले भाव दिखाती है
सुख में चमके तारे जैसी, दु:ख में नीर बहाती है
निगरानी करती है तन की, बाहर, भीतर देख रही
पलकों के द्वार लगाकर, अंतस में भी झांक रही
करुणा पाकर द्रवित नयन, स्नेह भाव दर्शाते हैं
हिय के आनंदवर्धन में, नयन नेह बरसाते हैं
भ्रम में मेरी मति गई, जो चली मैं पीर छिपाने
हृदयाघात को ढांक रही थी, दु:ख को चली छिपाने
पर नयन न छिपा सकी, दर्पण भावों का बन जाती
हृदय के सारे भाव सुलभ ही, बिन बोले नैन कह जाती ….
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