मजहब से ऊपर उठ नहीं पाता कोई | newsforum
©महेतरू मधुकर (शिक्षक), पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
मजहब से ऊपर उठ नहीं पाता कोई,
इंसानियत का सबक नहीं सिखाता कोई।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध यहाँ,
देखो ! बस इंसान ही बन नहीं पाता कोई।
धार्मिक होना ही पर्याप्त नहीं मेरे हिसाब से,
दया, प्रेम दिल में जब रख नहीं पाता कोई।
मूरत की बंदगी करने से कुछ नहीं मिलता,
स्वार्थ में यह सच्चाई नहीं समझाता कोई।
खुद को बेहतर समझने की गलतफहमी है,
दूसरों की अवहेलना से बच नहीं पाता कोई।
अमन ही जब सबका मकसद हैं मेरे दोस्तों,
फिर भी फासले दिलों का नहीं मिटाता कोई।
भेद बढ़ाके केवल कटुता पाया जा सकता है,
अहम में एक दूसरे को गले नहीं लगाता कोई।