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सब कुछ नहीं मिलता | ऑनलाइन बुलेटिन

©रामकेश एम यादव

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र.


 

 

दुनिया में सबको सब कुछ नहीं मिलता,

गर छत मिली, तो आसमां नहीं मिलता।

लोग अपने आप में मशगूल हुए इतना,

अब के लोगों से हौसला नहीं मिलता।

 

फूलों के हक में वो बोलकर फँस गया,

अब कोई सच बोलने वाला नहीं मिलता।

काट डाले लोग देखो जंगलों को इतना,

चहकते बुलबुलों को घोंसला नहीं मिलता।

 

कमर तोड़ दी है बादलों ने किसानों की,

चंद बूँदों से कोई पोखरा नहीं भरता।

फूल-पत्तों के साथ रहने में ही है मजा,

शहर में जीने का फासला नहीं मिलता।

 

जमींनी खुदाओं की यहाँ कोई कमी नहीं,

मुझे चाहिए जैसा वो देवता नहीं मिलता।

कितने सादे मन के लोग हुआ करते थे,

जड़ों से जुड़ा अब इंसा नहीं मिलता।

 

बढ़ रही आबादी देश में कुछ इस कदर,

कितने हुनरवालों को धंधा नहीं मिलता।

ख्वाहिशों के पहाड़ पे सो ले चाहे जितना,

कर्म हुआ खराब तो कफन नहीं मिलता।

 

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