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देश की राजनीति को राम मंदिर आंदोलन ने दी थी नई दिशा, आडवाणी अब भारत रत्न

लखनऊ
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता और संस्थापक सदस्यों में से एक पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात कर उन्हें भारत रत्न दिए जाने के संबंध में जानकारी दी। इसके बाद इससे संबंधित तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर उन्होंने देश को इसकी जानकारी दी। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक लालकृष्ण आडवाणी भारत रत्न घोषित किए जाने के बाद भाजपा नेताओं में हर्ष का माहौल उत्पन्न हो गया है। पिछले दिनों बिहार के जननायक कहे जाने वाले समाजवादी नेता पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई थी। अब लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने की खबर सामने आई है। लालकृष्ण आडवाणी को देश हमेशा राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए याद रखेगा।

वर्ष 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या रथ यात्रा के साथ अपने राजनीतिक जीवन में एक ऐसे जन आंदोलन की शुरुआत की, जिसका परिणाम आज सामने है। देश में राम मंदिर आंदोलन को जनता तक पहुंचने में लालकृष्ण आडवाणी की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। उनकी रथ यात्रा ने भाजपा और राम मंदिर आंदोलन दोनों को जनता के बीच स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान लालकृष्ण आडवाणी को न बुलाए जाने के मसले पर खूब चर्चा हुई थी। उस समय उनको लेकर कई प्रकार के दावे किए जा रहे थे। हालांकि, बाद में उनकी स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं की जानकारी सामने आई। लालकृष्ण आडवाणी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे। अब पीएम मोदी ने उनको भारत रत्न दिए जाने की जानकारी दी तो भाजपा समर्थक खुश हो गए हैं।

10 साल पुरानी पार्टी को चर्चा में लाए

वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया। इसके बाद से पार्टी एक बड़े मु्द्दे की तलाश में थी। वर्ष 1984 में जब विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस ने राम मंदिर के मुद्दे को छेड़ा तो भाजपा ने भी इसमें रुचि लेनी शुरू की। 1984 के पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी महज 2 सीट जीतने में कामयाब हुई। इस समय तक राम मंदिर का मुद्दा जनता तक नहीं पहुंच पाया था। इसके बाद अटल- आडवाणी की जोड़ी ने राजीव गांधी के हाथ से राम मंदिर के मुद्दे की राजनीति समाप्त करने की रणनीति बनाई। पार्टी की ओर से लगातार राम मंदिर के मुद्दे को उठाया जाने लगा। वर्ष 1989 में इसका असर दिखा। 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 11.36 फीसदी वोट शेयर हासिल करने में कामयाब रही। पार्टी 85 सीटों पर जीत दर्ज की। इसमें आडवाणी की भूमिका सबसे बड़ी थी।

राम मंदिर के रथ पर सवार हुए आडवाणी

केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी। यह एक अनोखी सरकार थी। इस सरकार को भाजपा ने भी समर्थन दिया था और कम्युनिस्ट पार्टी ने भी। हालांकि, पर्दे के पीछे से कांग्रेस का खेल जारी था। जनता दल में सेंधमारी की कोशिश चल रही थी। भाजपा जानती थी कि यह बेमेल गठबंधन अधिक दिनों तक नहीं चलने वाला है। ऐसे में लालकृष्ण आडवाणी ने वर्ष 1990 में रथ यात्रा का ऐलान कर दिया। सोमनाथ से 25 सितंबर 1990 को रथ यात्रा निकालने की तैयारी शुरू हुई। भाजपा तब सरकार का हिस्सा थी। पीएम वीपी सिंह इस रथ यात्रा के आयोजन को होने नहीं देना चाहते थे। आडवाणी की रथ यात्रा के तात्कालिक कारणों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि उस समय तक विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर के मुद्दे को गरमा दिया था।

आडवाणी ने बदल दी थी राजनीति की धारा

आडवाणी साल 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित जनसंघ से जुड़े. 1977 में जनता पार्टी से जुड़े फिर 1980 में बीजेपी की स्थापना की. भाजपा के साथ आडवाणी ने राजनीति की धारा बदल दी. आडवाणी ने आधुनिक भारत में हिन्दुत्व की राजनीति से प्रयोग किया. उनका ये प्रयोग सफल रहा. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की लहर में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने महज 2 सीटें जीतीं थी. 1989 में बीजेपी ने राम जन्मभूमि आंदोलन को औपचारिक समर्थन देना शुरू कर दिया था. इसका फायदा बीजेपी को लोकसभा चुनाव में पहुंचा. लिहाजा पार्टी 2 सीटों से बढ़कर 86 सीटों पर पहुंच गई.

 रथयात्रा, हाई वोल्टेज भाषण और गिरफ्तारी

इसके बाद आडवाणी पूरी ताकत के साथ इस आंदोलन से जुड़ गए. 25 सितंबर 1990 को राममंदिर निर्माण के लिए उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथयात्रा निकाली. इस रथ यात्रा से हिन्दी पट्टी राज्यों में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा. आडवाणी ने यहां हाई वोल्टेज भाषण दिया और सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाया. हालांकि रथ यात्रा के दौरान भारत में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच साम्प्रदायिक वैमनस्य का भाव भी पनपा. रथयात्रा आगे बढ़ती गई और बिहार में पहुंची. 7 महीने पहले बिहार के सीएम बने लालू यादव तब राजनीति के युवा थे.

42 साल के लालू यादव ने आडवाणी की रथ यात्रा रोकने का प्लान बनाया. लालू ने अपने दो अफसरों को इस मिशन पर भेजा. रात होते ही प्रशासन ने शहर का टेलीफोन एक्सचेंज डाउन करवा दिया. 22-23 अक्टूबर की दरम्यानी रात को आडवाणी रथ यात्रा को विराम देकर समस्तीपुर सर्किट हाउस में रुके थे. सुबह पौने पांच बजे उनके दरवाजे पर दस्तक हुई और आडवाणी को बताया गया कि उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. आडवाणी ने अफसरों से कागज मांगा, उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के नाम एक पत्र लिखकर केंद्र की वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया. आडवाणी गिरफ्तार कर लिए गए. भारत की सरकार गिर गई.

हवाला कांड में शामिल होने का आरोप और बेदाग बरी

1991 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी की रथयात्रा से बीजेपी को फायदा हुआ. बीजेपी की सीटें 120 तक पहुंच गई. 1992 में अयोध्या आंदोलन फिर परवान चढ़ने लगा. दिसंबर 1992 में फिर से कार सेवा का ऐलान किया गया. सीएम कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि उनकी सरकार मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देगी. लेकिन 6 दिसंबर 1992 को वीएचपी, बजरंग दल और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया और मस्जिद की एक-एक ईंट उखाड़कर मलबे पर अस्थायी मंदिर बना दिया. इस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आसपास ही मौजूद रहे. 1995 में आडवाणी ने वाजपेयी को पीएम पद का दावेदार बताकर सबको हैरानी में डाल दिया था. 1996 में आडवाणी पर हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगा, विपक्ष उनपर उंगली उठाता इससे पहले ही उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. बाद में वे उस मामले में बेदाग बरी हुए.

छवि बदल कर की राजनीति

लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी छवि को बदला। भाजपा में आक्रामक राजनीति की शुरुआत उन्होंने की। लोकसभा चुनाव 1989 में सफलता के बाद अयोध्या मुद्दे को आडवाणी ने जोरदार तरीके से उठाया। विश्व हिंदू परिषद की ओर से 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में कारसेवा की घोषणा हुई थी। इसी दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा का आह्वान कर दिया। सोमनाथ में निर्धरित 25 सितंबर 1990 को वे रथ पर सवार हुए थे। स्वर्ण जयंती रथ पर सवार आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का आंदोलन जनता के बीच पहुंचा दिया।

स्वतंत्र भारत में यह पहला मौका था, जब कोई भी राजनीतिक दल मंदिर निर्माण के लिए समर्थन मांग रहा था। आडवाणी का रथ जिन शहर, गांव, राज्य से गुजरा, उस पर फूल बरसाए गए थे। लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा था। राम मंदिर का मुद्दा अब जनता का मुद्दा था। वहीं, 10 साल पुरानी पार्टी लोगों के बीच चर्चा में थी। आडवाणी के दूरदर्शी नेतृत्व ने पार्टी को बड़े स्तर पर सफलता दिलाई थी।

रथ रुकने के बाद भी हुए सफल

आडवाणी के रथ को बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन लालू प्रसाद यादव की सरकार ने रोक दिया था। उनका रथ रोके जाने के बाद भी पार्टी को बड़े स्तर पर सफलता मिली। आडवाणी ने 1992 के बाबरी विध्वंस के दौरान अयोध्या में मौजूद रहकर इस घटना को रोकने का प्रयास भी किया था। हालांकि, उन पर आरोप लगे। केस दर्ज हुआ। बाद में बरी हुए। देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी की एंट्री आडवाणी के स्वर्ण जयंती रथ के सारथी के तौर पर ही हुई थी। ऐसे में आडवाणी और पीएम मोदी का संबंध काफी गहरा है। उको भारत रत्न दिए जाने की घोषणा ने राम मंदिर आंदोलन के उन पलों को रामभक्तों के समक्ष एक बार फिर ला दिया।


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