तबाही का बवंडर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
एक पल में राजा से रंक बनाती है ये जिंदगी,
अंजान पलों की यही खासियत है अंजानी।
वक्त के आगे हारे हुए है सब लोग यहां पर,
यही है सबके जिंदगी की हर बदलती कहानी।
ये जिंदगी तो है हर पल एक नई पहेली,
इस पल-पल बदलती जिंदगी को कौन यहां जान सका है?
हर दिन यहां होता है अंधेरा और सवेरा मगर,
उसी सुरज की रोशनी का हर दिन यहां नया-नया अंदाज है।
कुदरत में भी देखो हर जगह है नया बदलाव,
कहीं पर छाई हरियाली तो कहीं पर उजड़ा हुआ मंज़र है।
ऐसे ही है ये जिंदगी सभी की यहां पर निरनिराली,
कहीं पर दुखों का पहाड़ तो कहीं पर सुखों की बहार है।
जिंदगी युंही नहीं देती किसी को दगा यहां पर,
यह तो अपने-अपने कर्मों से मिली सौगात होती है।
बुराईयों के रास्तों पर मिलता नहीं कभी सुकून जीवन में,
बुराईयों के रास्तों पर तो हरपल तबाही ही हंसती है।
इसीलिए जलाओ द्वेष और अहंकार अपने मन का,
वो अहंकार ही एक दिन तबाही का बवंडर बन जाता है।
और जब बवंडर आता है कुदरत में भी तो,
हरे-भरे खिले हुए चमन को भी पल में उजाड़ देता है।
एक पल में राजा से रंक बनाती है ये जिंदगी,
ये जिंदगी तो सभी के लिए कुछ दिनों की मिली मोहलत है।
इसीलिए जियो खुशियां बांटकर इस संसार में,
क्योंकि सिर्फ आज यहां अपना है और वो कल किसने यहां देखा है?