EWS कोटे के खिलाफ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने खोला मोर्चा, भाजपा- कांग्रेस ने कही यह बात | ऑनलाइन बुलेटिन
चेन्नई | [तमिलनाडु बुलेटिन] | ईडब्लूएस कोटे (सवर्ण आरक्षण) पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लेकर सियासत शुरू हो गई है। इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने ईडब्लूएस कोटे (सवर्ण आरक्षण) का विरोध करने वाले लोगों और संस्थाओं से एकजुटता की अपील की है। स्टालिन ने कहा कि 2019 में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए ईडब्लूएस कोटे के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दशकों से चलाई जा रही सामाजिक मुहिम के लिए झटका है। इस बीच भाजपा ने फैसले का स्वागत किया है तो कांग्रेस ने अलग ही सुर आलापा है।
वीसीके चीफ ने बताया संघ परिवार का एजेंडा
स्टालिन ने कहा कि इस फैसले के सभी कानूनी पहलुओं की समीक्षा के बाद अगला कदम उठाया जाएगा। वहीं, राज्य सरकार में डीएम के साथी वीसीके ने भी फैसले पर नाखुशी जाहिर की है। वीसीके चीफ थोल थिरुमालावलन ने ईडब्लूएस कोटा को संघ परिवार का एजेंडा बताया है।
दूसरी तरफ, केंद्र में सत्ताधारी भाजपा ने सोमवार को ईडब्लूएस कोटे के तहत सवर्ण गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। भाजपा ने कहा कि एक बार फिर साबित हो गया कि नरेंद्र मोदी सरकार ‘सभी लोगों’ को संविधान के मुताबिक बिना किसी भेदभाव के सबको समान अवसर दे रही है।
मीडिया को संबोधित करते हुए पार्टी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन मोदी सरकार के संविधान के 103वें संशोधन के फैसले पर मुहर है। उन्होंने कहा कि इससे साबित हो जाता है कि देश ‘गरीबों’ की दशा को बेहतर बनाने और उनकी सामाजिक- आर्थिक दशा को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री का विजन स्पष्ट है।
कांग्रेस ने कही यह बात
वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ईडब्लूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि कांग्रेस नेता उदित राज ने फैसले पर विवादास्पद ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट अपर कास्ट माइंडसेट वाली है। वहीं, जयराम रमेश ने इस फैसले का क्रेडिट पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को दिया है।
उन्होंने कहा कि इस सुधार की शुरुआत डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हो गई थी। साल 2005-06 में उन्होंने सिन्हो आयोग की नियुक्ति की थी, जिसने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट फाइल की थी। उन्होंने कहा कि इसके बाद बड़े पैमाने पर विचार-विमर्श किए गए थे और 2014 में बिल भी तैयार हो गया था। मोदी सरकार को बिल लागू करने में पांच साल का समय लग गया।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इससे पहले आज सुबह आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग के लोगों को मिलने वाले EWS कोटे पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने इस 10 फीसदी आरक्षण को वैध करार दिया। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने ईडल्ब्यूएस आरक्षण को सही करार दिया। उन्होंने कहा कि यह कोटा संविधान के मूलभूत सिद्धांतों और भावना का उल्लंघन नहीं करता है।
माहेश्वरी के अलावा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने EWS कोटे के पक्ष में अपनी राय दी। उनके अलावा जस्टिस जेपी पारदीवाला ने भी गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को सही करार दिया।
गौरतलब है कि बता दें कि संविधान में 103वें संशोधन के जरिए 2019 में संसद से EWS आरक्षण को लेकर कानून पारित किया गया था। इस फैसले को कई याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने आज फैसला सुनाया है।
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