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दाने-दाने को मोहताज ‘टाइगर’, पाक से खुफिया इनपुट देने वाला पूर्व रॉ एजेंट खा रहा दर-दर की ठोकर, लॉकडाउन में छूट गई नौकरी | newsforum

लखनऊ | रील और रियल लाइफ में कितना अंतर होता है, इसकी एक बानगी आज यहां देखने को मिली। ऐशो आराम की तमाम चीजों से भरी जिंदगी। चाहे जेम्स बॉन्ड हो या हिन्दी फिल्म ‘एक था टाइगर’, जिसमें सलमान खान भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के एजेंट बने थे। रीयल लाइफ का असली टाइगर आज भी जिंदा है लेकिन दाने-दाने को मोहताज है। नजीबाबाद के रहने वाले मनोज रंजन ने जब कलेक्टर दफ्तर में दिवस अधिकारी के सामने कहा कि सर, मैं पूर्व रॉ एजेंट हूं। मुझे रहने के लिए छत चाहिए तो वह हैरान रह गए। कलेक्टर नहीं मिले इसलिए उनको लौटना पड़ा।

रॉ एजेंट गोमतीनगर में वे स्टोर कीपर की नौकरी कर रहे थे, जो लॉकडाउन में छूट गई। तब से मुफलिसी ने घेर लिया।

 

लॉकडाउन में छूट गई नौकरी

 

जासूसी के जुर्म में पाकिस्तान में गिरफ्तार होने के बाद 2005 में बाघा बॉर्डर पर छोड़े गए मनोज रंजन कुछ साल पहले पत्नी का इलाज कराने लखनऊ आए थे। पाकिस्तान से छूटने के बाद 2007 में उनकी शादी हुई लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि पत्नी को कैंसर हो गया है। 2013 में पत्नी की मृत्यु हो गई। तब से वे लखनऊ में हैं। गोमतीनगर विस्तार में स्टोर कीपर की नौकरी कर रहे थे, जो लॉकडाउन में छूट गई। तब से मुफलिसी ने घेर लिया। पाकिस्तान में यूनुस, यूसुफ और इमरान बनकर रहे।

 

80 के दशक में शुरू हुए पॉलिटिकल एप्वाइंटमेंट

 

80 का दशक था जब रॉ में पॉलिटिकल एप्वाइंटमेंट शुरू हुए थे। इस दौरान सरकारी सेवाओं की तरह सामान्य नागरिकों को योग्यता देखकर भर्ती किया गया। वर्ष 1985 के दौर में मनोज रंजन को नजीबाबाद से चुना गया। दो बार सैन्य प्रशिक्षण के बाद उन्हें कश्मीरियों के साथ पाकिस्तान भेजा गया था। लगातार सूचनाएं देते रहे लेकिन जनवरी 1992 में उन्हें पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कराची जेल ले जाया गया। देश के लिए अपनी जवानी कुर्बान करने वाले मनोज अब 56 साल के हैं। आगे जीवन कैसे कटेगा, नहीं जानते। कलेक्टोरेट पहुंचे थे कि पीएम आवास या कोई सरकारी मदद मिल जाए लेकिन बैरंग लौटना पड़ा।

 

पहुंचाईं कई महत्वपूर्ण जानकारियां

 

कश्मीरी युवाओं को बरगलाकर मनोज रंजन ने अफगानिस्तान बार्डर पर ट्रेनिंग दिए जाने जैसी कई अहम जानकारियां देश तक पहुंचाईं। खुफिया एजेंसी की पहली शर्त होती है कि पकड़े जाने के बाद वह एजेंट को नहीं पहचानेगी। मनोज ने भी कॉन्ट्रेक्ट साइन किया था लेकिन भारत लौटने के बाद दो बार सवा लाख रुपए तक की मदद रॉ के पुराने अधिकारियों ने की। इसके बाद हाथ खींच लिए।


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