यौनकर्मियों को कानूनी राहत कब तक | ऑनलाइन बुलेटिन
©के. विक्रम राव, नई दिल्ली
-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
वेश्यावृत्ति तथा राजनीति केवल 2 ऐसे वृत्तियां हैं जहां अनुभवहीनता ही अर्हता मानी जाती हैं। यूं तो मिस्त्री और शल्य-चिकित्सक में सादृश्य हैं, पर समानता नहीं। मसला है कि यदि नारी के पास जीविकोपार्जन हेतु साधन ना होता ? “तो वह भूखों मरे ? अथवा वेश्यागिरी अपनाएं या फिर पुल से कूद जाए।” ऐसी राय थी कनायन कवियित्री मार्गिरेट एटवूड की। हताशा इस हद तक ! इस तीखे तथ्य पर साहिर लुधियानवी ने लिखा था : “औरत ने जनम दिया मर्दो को, मर्दों ने उसे बाजार दिया।” इन विचारों का यहाँ संदर्भ है कि गत सप्ताह (17 नवंबर 2022) सन फ्रांसिस्को में लेखिका और फिल्मकार कैरोल लीड का निधन। वे यौनकर्मियों के संगठन की पुरोधा रहीं। उनके आधिकारों तथा कल्याण हेतु संघर्षशील।
पश्चिमी विकसित राष्ट्रों की तुलना में यौनकर्मियों के मसले पर भारत काफी अग्रगामी रहा हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने (इस वर्ष 25 मई) यौनकर्म को वृत्ति माना था। पुलिस को निर्दिष्ट किया था कि इन कर्मियों के मामले में बेजा हस्तक्षेप न करें। इसके ठीक साल भर पूर्व मोदी सरकार ने (30 नवंबर 2021) प्रस्तावित किया था कि यौनकर्मियों के पुनर्वास का विधेयक संसद में पेश होगा। यह जानकारी सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ (29 नवंबर 2021) के न्यायमूर्ति–द्वय एल. नागेश्वर राव तथा बीआर गवई को दी गयी थी, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल आरएस सूरी के द्वारा। तब केंद्र शासन ने संसद के जारी शीतकालीन सत्र के दौरान यौनकर्मियों की तस्करी रोकने और पुनर्वास के लिए कानून लाने की योजना बनाई गयी थी।
वेश्याओं के विषय पर भारतीय साहित्यकारों ने खासकर अभियान चलाया था। वेश्या-हित हेतु। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास की नायिका “सुमन” एक ऐसी नारी जाति का प्रतिनिधित्व करती है जो हजार आपत्तियों का सामना स्वयं ही करती है और अपने द्वारा किए गए अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोगने के लिए तैयार भी रहती है। सुमन वेश्या जीवन ग्रहण करने के बाद समाज में तिरस्कृत होने का मार भी सहन करती है। बाबू भगवती चरण वर्मा की “चित्रलेखा” और आचार्य चतुरसेन शास्त्री की वैशाली की नगर वधू का उल्लेख समीचीन होगा।
वेश्यावृत्ति पर लोकनीति रचने मे बॉलीवुड वालों ने अभूतपूर्व सहयोग किया। इस विषय पर पहली फिल्म 1955 में आई थी। बिमल रॉय द्वारा निर्देशित “देवदास” का किरदार दिलीप कुमार ने निभाया था। इसके 47 साल बाद (2002 में) संजय लीला भंसाली की “देवदास” रिलीज हुई थी, जिसमें ऐश्वर्या राय, शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित मुख्य भूमिका में थे। फिल्म कथानक शीर्षक “देवदास” को शरतचंद्र चटोपाध्याय ने 1917 मे लिखा था।
शक्ति सामंत से लेकर संजय लीला भंसाली और पी.सी.बरुआ से लेकर बिमल रॉय तक देवदास जब भी सामने आया है, उसने लोगों को बेचैन भी किया है, रुलाया भी है। और रिझाया भी। मेरी मातृभाषा तेलुगू में “देवदासु” बनाया वेदांतम राघवैया ने इस फिल्म में देवदास का रोल निभाने वाले ए. नागेश्वर राव के करियर के लिए भी ये फिल्म मील का पत्थर साबित हुई थी।
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