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वे क्या दिन थे बचपन के | ऑनलाइन बुलेटिन

©गणेन्द्र लाल भारिया, शिक्षक

परिचय – कोरबा, छत्तीसगढ़


 

 

वे क्या दिन थे वास्तव में बचपन के,

चहेते व प्यारे बन जाते हर जन के।

 

दोस्तों के साथ उछल-कूद मौज मस्ती,

ईमानदार जीवन की वो कैसी थी हस्ती।

 

खेल-खेल में पढ़-लिख गुजरे बचपन,

बचपन के थे दरिया-सी चंचल मन ।

 

मोह माया न भविष्य की कोई चिंता,

दीन हीन ईर्ष्या न मन में कोई हिनता।

 

अमीर गरीब नवाज धन कोई परवाह,

खुशियों के दिन थे वे हम बेपरवाह।

 

जोश उमंग उत्साह के थे अत्यंत भाव,

वर्तमान के बचपन ये सब के अभाव।

 

रोना -धोना और खूब खेलना भाता,

देश -दुनिया से न कोई था नाता ।

 

वे दिन बचपन के थे कितने अच्छे,

तन-मन दिल से थे हम बहुत सच्चे।

 

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