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तमन्नाएं | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©डीआर महतो “मनु”

परिचय- रांची, झारखंड


 

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

ना थके ना रुके कभी सूरज और चांद…

ना बदला कभी उनका चलने का अंदाज।

बीत गये तीनों युग कितनी विशाल है धुरी!

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

कब तक बदलेंगे ये वक्त और मौसम…

बस गिनने को बचे दिन, महीने और साल।

ना रुके कभी ना दिखा कभी उनकी खुमारी!

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

बागों में खिले पारिजात और रजनीगंधा…

बहारों में फैल रही उनकी महक बेमिशाल।

बने हार और सजावट उनकी क्या कर्जदारी!

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

धरती को सींचते रहे नदियां और सरोवर…

ढोते रहे कचड़े और गंदगी की अंबारों को।

कभी ना किया भेदभाव कैसी उनकी खुद्दारी!

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

जीते रहे शौहरतों से, बनते रहे महल…

विचलित मन में संवरते रहे ख्वाबें, पाने की  आश में।

पनप रही हैं कैसी चाहते बेशुमारी!

तमन्नाएं कहां होती पूरी रह जाती हैं अधूरी…

 

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