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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर हुए मतदान में भारत ने नहीं लिया हिस्सा, मनीष बोले- ‘मित्र’ को बतानी चाहिए थी उसकी गलती | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [नेशनल बुलेटिन] | यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रामक बर्ताव की कड़े शब्दों में निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर हुए मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया। इसे लेकर कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस के सीनियर नेता मनीष तिवारी ने कहा कि भारत को यूक्रेन के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए मतदान में भाग लेना चाहिए था। वहीं जाने-माने भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने भी मतदान में भाग न लेने के भारत के फैसले पर नाखुशी जताई है।

 

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया, ”ऐसा समय आता है जब राष्ट्रों को खड़े होने और बिल्कुल अलग खड़े नहीं होने की जरूरत होती है। काश भारत ने सुरक्षा परिषद में यूक्रेन की उस जनता साथ एकजुट प्रकट करते हुए मतदान किया होता जो अप्रत्याशित और अनुचित आक्रमण का सामना कर रही है। ‘मित्र’ जब गलत हों तो उन्हें यह बताने की जरूरत है कि वो गलत हैं। दुनिया के ऊपर से आवरण हट गया है। भारत को पक्षों को चुनना होगा।”

 

भारतीय-अमेरिकी सांसद खन्ना ने भी भारत की आलोचना की

 

जाने-माने भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने भी मतदान में भाग न लेने के भारत के फैसले पर नाखुशी जताई है। उन्होंने कहा कि चीन की मौजूदा विस्तारवादी योजनाओं के खिलाफ नई दिल्ली के साथ अमेरिका खड़ा रहेगा न कि रूस। भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात रूसी हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित प्रस्ताव पर मतदान से शुक्रवार को दूर रहे, जबकि रूस ने इस पर वीटो किया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 11 और विपक्ष में एक वोट पड़ा।

 

‘पुतिन के खिलाफ स्वतंत्र आवाज उठाने का वक्त’

 

कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक सांसद खन्ना ने ट्वीट किया,”राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी 1962 में चीन के आक्रमण के खिलाफ भारत के साथ खड़े रहे थे। चीन की मौजूदा विस्तारवादी योजनाओं के खिलाफ भारत के साथ अमेरिका खड़ा रहेगा न कि रूस। भारत के लिए पुतिन के खिलाफ स्वतंत्र आवाज उठाने का वक्त आ गया है। इससे दूर रहना स्वीकार्य नहीं है।”

 

UNSC में अमेरिका ने पेश किया यह प्रस्ताव

 

सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव अमेरिका की तरफ से पेश किया गया था। भारत ने युद्ध को तत्काल समाप्त करने की मांग करते हुए कहा कि मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस परिषद के स्थायी सदस्य हैं और उनके पास वीटो का अधिकार है। भारत इसका स्थायी सदस्य नहीं है और उसका दो साल का मौजूदा कार्यकाल इस साल खत्म हो रहा है।


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