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नीतीश-BJP की फिर होगी यारी ? प्रशांत किशोर का दावा नहीं लगता खोखला, देखें 14 साल पुरानी एक घटना | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [नेशनल बुलेटिन] | बिहार में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी NDA और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते टूट चुके हैं, लेकिन चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) दावा कर रहे हैं कि नीतीश ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ सभी दरवाजे बंद नहीं किए हैं। वह अपने इस दावे के लिए राज्यसभा के उपसभापति पद का सहारा ले रहे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसपर उल्टा प्रशांत किशोर (PK) को ही घेर रहे हैं।

 

बहरहाल, अगर 14 साल पुरानी सियासी घटना पर गौर किया जाए, जहां CPM और UPA में खींचतान के बीच तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से बाहर निकाला गया था, तो किशोर के दावों को बल मिलता दिख रहा है।

 

पहले समझें किशोर ने क्या कहा

 

प्रशांत किशोर (PK) भी बिहार में पदयात्रा में जुटे हुए हैं। पश्चिम चंपारण जिले में एक जनसभा के दौरान उन्होंने कहा था, ‘अगर आपने NDA छोड़ दी है, तो आप वह पद क्यों नहीं छोड़ रहे? वह पद छोड़ें या सांसद हटा दें।’ उन्होंने जनता दल (यूनाइटेड) कोटे के सांसद हरिवंश नारायण सिंह को पद से हटाने की मांग कर रहे हैं।

 

उन्होंने नीतीश पर भाजपा के साथ विकल्प खुला रखने और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ सरकार चलाने के जरिए जनता को ‘डबल क्रॉस’ करने के आरोप लगाए।

 

2008 में क्या हुआ था?

 

साल 2008 में भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील को लेकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली UPA सरकार में तनातनी शुरू हो गई थी। नौबत यहां तक आ गई कि वाम दल ने 9 जुलाई को डील के खिलाफ विरोध में सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। 2004 में बनी सरकार में वाम नेता सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। खास बात है कि वह लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले पहले कम्युनिस्ट सांसद थे।

 

तब 21 जुलाई को लोकसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया गया था। सीपीएम (CPM) चाहती थी कि चटर्जी सत्र से पहले पद छोड़ दें। पार्टी दिग्गज ज्योति बसु ने भी उन्हें इस्तीफा देने के संकेत दिए थे, लेकिन चटर्जी पार्टी के खिलाफ जाकर पद पर बने रहे। कहा जाता है कि उनका मानना था कि वह पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर हैं। नतीजा हुआ कि उनकी अध्यक्षता में ही लोकसभा का विशेष सत्र हुआ। बाद में वाम दल की तरफ से बयान जारी किया गया, जिसमें वरिष्ठ नेता को पार्टी से बाहर करने की जानकारी दी गई।

 

क्या कहती है जदयू

 

सिंह को लेकर जदयू का कहना है कि भले ही वे NDA के साथ नहीं हैं, लेकिन इसके चलते राज्यसभा सांसद को ‘संवैधानिक’ पद छोड़ने की जरूरत नहीं है। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी और राज्य मंत्री मदान साहनी ने कहा था, ‘हम किसी भी हाल में भाजपा के साथ नहीं जाने वाले हैं। उन्हें क्या परेशानी है? वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से अपनी ही मन की बात चला रहे हैं।’

 

अगस्त में अलग हुए रास्ते

 

सीएम नीतीश और भाजपा के रास्ते अगस्त में अलग हो गए थे। इसके बाद जदयू ने राजद, कांग्रेस समेत कई दलों के साथ मिलकर महागठबंधन सरकार बनाई थी। इससे पहले साल 2013 में भी जदयू ने भाजपा के दूरी बनाकर राजद से हाथ मिलाया था। बाद में साल 2017 में नीतीश महागठबंधन से भी अलग होकर एनडीए में वापस आ गए थे। 2020 विधानसभा चुनाव में पहली बार जदयू आंकड़ों के लिहाज से तीसरे स्थान पर पहुंची थी। उस दौरान राजद सबसे बड़ी और भाजपा दूसरे नंबर की पार्टी थी।

 

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