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हिंदी साहित्य आंदोलन में जितना ज्यादा लोग लिखेंगे, साहित्य का उतना विस्तार होगा –ठगेला | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

नई दिल्ली | [राजेश कुमार बौद्ध ] | ग्लोबल आर्गेनाइजेशन आफ आंबेडकराईज्ड लिटरेटिअर्स की और से प्रथम वार्षिकोत्सव 27 नवंबर को हिंदी भवन, दिल्ली में डा मनोहर राव, अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम का विषय इक्कीसवीं सदी का हिंदी साहित्य और साहित्यक आंदोलन था जिसकी शुरुआत अध्यक्ष डा राम मनोहर लाल, फैडरेशन के अध्यक्ष नेतराम ठगेला, कर्म शील भारती, पूर्व अध्यक्ष दलित लेखक संघ, रमेश कुमार, चीफ कमीश्नर आयकर (सेवा निवृत्त) के द्वारा गौतम बुद्ध व बाबासाहेब को पुष्पांजली देने व बुद्ध वंदना से हुआ

 

गोल के विषय में बताते महासचिव डा देवचंद्र प्रखर ने कहा अम्बेडकाराईट मुममेंट किसी जाति, लिंग आदि में भेद नहीं रखता अर्थात मानवतावादी है/प्रसिद्ध दलित साहित्यकार कर्मशील भारती ने कहां हिंदी साहित्य में वंचीतो की समस्यायों को कोई स्थान नहीं दिया जाता हिंदी साहित्य जगत ने वर्ण व्यवस्था व जातिवाद को बढ़ावा दिया तो पांखडवाद आंदोलन क्या चलायेगा।

 

श्री नेतराम ने‌ कहा दलितो में साहित्यकारो की संख्या लगभग नगण्य है, इसलिए रिटायरमेंट के बाद मैंने लेखन का काम शुरू किया है हालांकि पिछले 30 सालों से सामाजिक उत्थान पत्रिका का नियमित प्रकाशन कर रहे‌हे। नौकरी के दौरान 05 सामाजिक पुस्तकें लिखी थी, रिटायरमेंट के बाद भीमा से विश्व का महानतम व्यक्ति बनने की संघर्ष गाथा लिखी।

 

इसमें बाबासाहेब के सभी कार्यों का जिक्र करते हुए ऐसे लोगों चित्रण किया है जो इससे पहले‌ साहित्य में चर्चा नहीं थे, यह मैं नहीं कह रहा बल्कि देश के प्रसिद्ध आलोचक मोहनदास नैमीशराय जी का कहना है, मेरा मानना है जितने ज्यादा लोग लिखेंगे उतनी विविधता आयेगी।

 

मुख्य अतिथि डा हेमलता महेश्वरी, प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने कहा चाहे आजादी के आंदोलन को गांधी जी ने लीड किया मगर आजादी के बाद बने संविधान में उनका प्रभाव नहीं है, भारत अम्बेडकर के सिद्धांतों पर चल रहा है।

 

हमें बताया जाता है सिद्धार्थ ने बीमारी, बुढ़ापा या मृत्यु 29 साल की उम्र तक नहीं देखी क्या ये सम्भव है। इस दौरान कितने बुजुर्ग और बीमार उनके खुद के रिश्तेदार हुए होंगे यह कितनी बड़ी मुर्खतापूर्ण बात है। गौतमबुद्ध ने व्यवस्था को चुनौती देकर दार्शनिक तौर पर ही राजनीति को चुनौती दी जाती है।

 

हमें समझना होगा जिसके मन में तेज है वह सवाल पैदा करता है। बच्चे के सवाल करने पर हम उसे चुप करा देते है। यह ग़लत है। बच्चा स्कूल जाता है तो पुस्तके उसे जागृत करती पर टीचर एवं परिवार परम्परा से अपनाते हैं। बच्चे कंफ्युज रहते टीचर व परिवार वालों का आचरण यथार्थ है या पुस्तकों में सही लिखा है।

 

अध्यक्ष राव ने कहा गोल भी ज्ञानपीठ जैसे पुरस्कार देने की शुरुआत करेगी, आप सबका सहयोग चाहिए। इस अवसर पर अन्यों के अलावा देवचन्द्र भारती, रुपचंद गौतम, पुष्पा विवेक, राजेश विकास, राही, आर आर वर्मा, चिरंजी लाल आदि ने विचार रखे।

 

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