.

वर्क फ्रॉम होम : 62 साल पहले महिलाओं ने शुरू किया था लिज्जत पापड़, पढ़ें विस्तृत खबर | newsforum

मुंबई | भारतीय खानों में पापड़ का अपना ही महत्व है। और जब बात आती हो लिज्जत की तो इसके नाम के साथ ही हमारा और आपका बचपन आंखों के सामने घूम जाता है। यह वह नाम है जिसे घर पर मां चूल्हे पर भुनती या तलती थी तो इससे उठने वाली महक हमें अहसास दिला देती थी कि खाना पककर तैयार हो गया है और हमें अपनी पंक्ति में बैठ जाना है। इस पापड़ को बनाने की कहानी बहुत ही रोचक है। 80 के दशक तक बहुत ही कम लोगों को पता था कि लिज्जत पापड़ महिला समूह द्वारा संचालित गृह उद्योग का उत्पाद है। इसका स्वाद आज भी लोगों के दिलों पर राज़ करता है। यहां पढ़िए लिज्जत के 62 साल के उतार-चढ़ाव और रोचकता से भरे सफर को …

 

हम और आप जिस लिज्जत पापड़ को बहुत शौक से खाते हैं। उसके बनने के कहानी बहुत ही दिलचस्प है। इस पापड़ को बनाने की शुरुआत कुछ महिलाओं के समूह ने किया था। लगभग 62 साल पहले जसवंतीबेन पोपट और 6 स्थानीय महिलाएं मुंबई के गिरगांव में एक छत पर इकट्ठा हुईं और कैसे अपने परिवार की आय बढ़ाई जा सकती हैं, इस पर विचार करने लगीं। वे सभी महिलाएं थोड़ी बहुत ही पढ़ी-लिखी थीं, लेकिन वो ये जानती थीं कि किसी घर को कैसे चलाया जाता है। यहीं इन महिलाओं ने साथ मिलकर पापड़ बनाने का काम शुरू करने का फैसला किया।

 

पहली बार में महिलाओं ने बेचे 4 पैकेट

 

इन सभी महिलाओं में से हर एक महिला पापड़ बनाने से जुड़ा एक-एक सामान जैसे- उड़द दाल का आटा, काली मिर्च, हींग, मसाला खरीदतीं और पापड़ बनाने में जुट जातीं। इस तरह से उन्होंने पापड़ बनाने का काम शुरू कर दिया और एक टीम बनाकर अपने आस-पड़ोस में ही इसे बेचने लगीं। पहली बार में उन्होंने इसके कुल 4 पैकेट बेचे और 8 आने यानि 50 पैसे की कमाई की। इसके अगले दिन उन्होंने दोगुना पापड़ बनाए और पहले दिन से दो गुना अधिक कमाई भी की। वो सभी महिलाएं रोज के मुनाफे को आपस में बराबर-बराबर बांट लिया करती थीं।

 

3 महीनों में 200 महिलाएं ग्रुप से जुड़ीं

 

जल्द ही उनसे और भी महिलाएं जुड़ने लगीं और अगले 3 महीनों में, कम से कम 200 महिलाएं पापड़ बनाने का काम करने लगीं। उन्होंने पूरे शहर में इसके कई ब्रांच बना दिए और बाद में दूसरे राज्यों में इसका विस्तार किया। इतना ही उन्होंने युवा महिलाओं को भी इससे जोड़ा, उन्हें नौकरियां दी और पापड़ बनाने की ट्रेनिंग भी दी। 6 साल बाद उन्होंने इसे एक कंपनी के रुप में रजिस्टर करवा लिया।

 

भारत की सबसे पुरानी महिला सहकारी समिति

 

आज श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ भारत की सबसे पुरानी महिला सहकारी समिति है और यह 17 राज्यों में 45,000 महिलाओं को रोजगार भी देता है। अब यह 1,600 करोड़ रुपए की एक कंपनी है, जो सालाना 400 करोड़ से अधिक पापड़ के अलावा हाथ से बनी चपातियां, मसाले और डिटर्जेंट पाउडर बेचती है।

 

जसवंतीबेन पोपट जो अब 91 साल की

 

यह अभी भी बिना किसी औपचारिक कौशल वाली महिलाओं को रोजगार प्रदान करता है और मुनाफे को उनसे साझा करता है। यह तकनीकी रूप से भी लगातार आगे बढ़ा है। इसे शुरू करने वाली जसवंतीबेन पोपट जो अब 91 साल की है, उन्हें इस साल पद्म-श्री से सम्मानित भी किया गया था। लिज्जत पापड़ की सफलता की कहानी अब जल्दी ही आशुतोष गोवारिकर द्वारा निर्देशित एक फिल्म के जरिए सभी के बीच आने को तैयार है।

 

विज्ञापन देखा और पापड़ बनाना शुरू कर दिए

 

61 साल की पराड़कर जब मात्र 10 साल की थीं, जब उनकी मां ने विज्ञापन देखा और लिज्जत के लिए पापड़ बनाने शुरू कर दिए। बड़े होने पर उन्होंने स्कूल जाने से पहले कई दिनों तक अपने मां की मदद भी की। पराड़कर याद करते हुए कहती हैं, “जब मैंने अपने स्कूल की परीक्षा पूरी की, उसके बाद बांद्रा शाखा के प्रमुख लीलाबेन, जहां मेरे परिवार और दोस्तों ने काम किया, उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वहां पमेंट डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी लेना चाहती हूं।” पराड़कर ने यह नौकरी ले ली। इस दौरान जब सेल्समैन तैयार पैकेटों को लेने के लिए आते थे, तो वह खातों को रखने और आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी में शाखा प्रमुख की सहायता करती थीं।

 

आज भी अखबारों में निकलता है भर्ती विज्ञापन

 

इस बीच, लिज्जत, अभी भी काफी हद तक उसी तरह से काम करता है। वे अभी भी अखबारों के विज्ञापनों के माध्यम से महिलाओं की भर्ती करते हैं। हर कोई एक पापड़ बनाने वाले के रूप में जुड़ जाता है। फिर उसे प्रशिक्षित किया जाता है। बाद में पास के केंद्र से आटा उठाकर घर पर पापड़ बनाने और सुखाने का काम होता है। और अंत में उस पापड़ के बदले उन्हें पैसे का भुगतान कर दिया जाता है। बसें महिलाओं को केंद्रों तक ले आने-जाने के लिए फेरी लगाती हैं। अधिकांश प्रक्रिया में हाथ से काम किया जाता है। पराड़कर कहती हैं, ‘हम परिचालन के इस पक्ष को नहीं छूते। अगर हम मशीनों का उपयोग करना शुरू करते हैं, तो हम इतनी सारी महिलाओं के लिए रोजगार नहीं पैदा कर पाएंगे।”

 

पराड़कर की तरह ही 44 वर्षीय मंजुला एस ने अपनी मां के साथ लिज्जत केंद्र में शुरुआत की। जब वह 27 साल की थीं, तब उन्होंने उनके लिए आधिकारिक रूप से पापड़ बेलना शुरू कर दिया था। वह कहती हैं कि यहां का माहौल सौहार्दपूर्ण है। महिलाओं में एकता है, सभी लोग मिलनसार और मददगार हैं।”


Back to top button