हां मैं हूं कवि | ऑनलाइन बुलेटिन
©अविनाश पाटले
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़
हां मैं हूं कवि
मन के भाव देता छवि
जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना है
कहता है मन लिखने को
हर विवश आंख के आंसू को
हर चीखती, चिल्लाती सांसों को
कोरोना चिता से जलती लाशो को
देश भर में होते हाहाकारों को
देख ह्रदय सुलग उठती भाव गति
हां, मैं हूं कवि
मन के भाव देता छवि
मां, बहन, बेटी के लुटे अस्मते लिखूं
जग में हो रहे विषमते लिखूं
लिखूं पैसे से सौदे धर्म, इज्जत
व जाति पंथ से फुट भरी भारत
लिखता रहता हूं मैं नित यहीं
हां, मैं हूं कवि
मन के भाव देता छवि
देख दृष्टि-सृष्टि का वेदन भाव
कलम की लेखनी में डॉ.लते प्रभाव
दलित शोषितों का छीने अधिकार
भूख, अशिक्षा, बेवस लाचार
शासन प्रशासन को करते गोहर
भेदभाव, अस्पृश्यता कर धिक्कार
है सब ये सरकारी गद्दार
धर्मांधता में डूबे अविवेकी लोग
रुपए पैसे से है इन्हें लोभ
सदियों से घृणा के दीवार से अवि
हां मैं हूं कवि
मन के भाव देता छवि
मजदूर, गरीब के देख दुर्दशा
कड़कती धूप, पसीजते रूप
पर भी पेट भर खाना नहीं है भूख
मेहनत करे नंगे पांव
कौन बीमार है कौन घाव
कभी धूप तो कभी छांव
फावड़ा, कुल्हाड़ी
पकड़े हाथ हथोड़े
कुलबुलाते दौड़े
समय पर करे काम
न मिलते सही दाम
कर कल्पना चिंताग्नि निराश
यातना अश्क बहते नित्यशः
इंसानी मानवता धराशाई हो गया
संत जन खंडित हो गया
इसलिए मैं कलमकार बन गया
हां मैं मुकम्मल कायनात
बदलना चाहता हूं
घोर विलाप को हर्ष
विलास में देखना चाहता हूं
अंधकार युग को प्रकाशित
दीए प्रज्वलित करना चाहता हूं
मैं तमलीन जगत में फैलाना चाहता हूं ज्ञान ज्योति रवि
हां मैं हूं कवि
मन के भाव देता छवि
जब तक पीड़ा है
तब तक मुझको जीना है
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