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बिलकिस मामला: आरोपी बोले-मां-बाप बूढ़े हैं, बेटे की शादी करनी है

नई दिल्ली.

बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के लोगों की हत्या के दोषियों ने सरेंडर करने से पहले चार से छह सप्ताह का समय मांगा है। पिछले 24 घंटे में कम से कम 3 दोषियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए पारिवारिक जिम्मेदारियों और स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट तीनों दोषियों की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है।

सरेंडर से पहले और समय दिए जाने की याचिका पर शीर्ष अदालत में कल 19 जनवरी को सुनवाई होगी। बता दें कि सभी दोषियों को सरेंडर करने के लिए 21 जनवरी तक का समय दिया गया था। बता दें कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या मामले में अजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने 2022 में समयपूर्व रिहा कर दिया था। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को रद्द कर दिया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार का फैसला ''घिसा पिटा'' था और इसे बिना सोचे-समझे लिया था। शीर्ष अदालत ने दोषियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित जेल प्रशासन के समक्ष सरेंडर करने का आदेश दिया है।

अदालत के आदेश के बाद सभी दोषी अपने घरों से लापता बताए जा रहे हैं। इस बीच खबर आई है कि उन्होंने सरेंडर करने से पहले शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों, बूढ़े माता-पिता, फसलों की कटाई और बिगड़ते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें सरेंडर करने के लिए कुछ समय की और मोहलत दी जाए। पिछले 24 घंटों में 11 दोषियों में से तीन ने समय बढ़ाने के लिए अपील दायर की है। दोषियों में से एक गोविंदभाई नाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खराब स्वास्थ्य और पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए चार सप्ताह का समय बढ़ाने की मांग की है। एक अन्य दोषी मितेश भट्ट ने फसलों की कटाई का हवाला दिया है। बुधवार देर रात दायर अपने आवेदन में मितेश ने कहा, “सर्दियों की फसलें कटने के लिए खड़ी हैं। इसलिए मुझे कटाई और अन्य कामों के लिए 5 से 6 सप्ताह की जरूरत है।" 62 वर्षीय दोषी की शादी नहीं हुई है और उसे मोतियाबिंद है। उसने अपनी बढ़ती उम्र और आंख की सर्जरी कराने के वास्ते समय देने के लिए अदालत से दया की गुहार लगाई है।

दूसरे आरोपी रमेश रूपाभाई चंदना की उम्र 58 वर्ष है। उसने अदालत को बताया कि उसकी पहले ही एंजियोग्राफी हो चुकी है और वह दिल की बीमारी की दवाएं ले रहा है। चंदना ने सरेंडर करने के लिए छह सप्ताह का और समय मांग है। उसने अपनी याचिका में कहा कि 'इस हालात में उसके लिए सरेंडर करना मुश्किल होगा और इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा।" उसने अपने आवेदन में आगे दावा किया कि उसके छोटा बेटे की उम्र शादी की हो गई है। उसने कहा कि उसे और समय दिया जाए ताकि वह अपनी इस जिम्मेदारी को निभा सके। उसने अदालत को बताया कि उसकी फसलें कटाई के लिए तैयार हैं और वह अपने परिवार का एकमात्र पुरुष सदस्य है। उसने ये भी कहा कि उसकी 86 वर्षीय मां उम्र संबंधी कई बीमारियों से पीड़ित हैं। 55 साल के गोविंद भाई नाई ने भी समय बढ़ाने की मांग करते हुए अपने मां-बाप की उम्र का हवाला दिया। उसने दावा किया कि वह अपने बीमार 88 वर्षीय पिता और 75 वर्षीय मां की देखरेख करने वाला एकमात्र व्यक्ति है। दोषी ने दावा किया कि वह खुद एक बुजुर्ग व्यक्ति है और अस्थमा से पीड़ित है। हाल ही में उसका ऑपरेशन हुआ था और उसे एंजियोग्राफी करानी पड़ी थी। दोषी के दो बच्चे हैं जो अपनी जरूरतों के लिए पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं। सभी दोषी गुजरात के रहने वाले हैं। उन्होंने दावा किया है कि 15 अगस्त, 2022 को सजा में छूट मिलने के बाद से वे अपने परिवार के साथ रह रहे थे और इस दौरान उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।
बिलकिस के साथ क्या क्या हुआ था?
बता दें कि 3 मार्च, 2002 को अहमदाबाद के पास रंधीकपुर गांव में 21 वर्षीय बिलकिस बानो के परिवार पर हिंसक भीड़ ने हमला किया। महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया जबकि उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद दिसंबर 2003 में उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच का निर्देश दिया। 21 जनवरी, 2008 को एक विशेष अदालत ने बिलकिस बानो से बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। 15 अगस्त, 2022 को गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत गोधरा उप-कारागार से 11 दोषियों को रिहा किया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा में छूट को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्न और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है।


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