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भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओ की ऐसी घेराबंदी कि वे प्रदेश के दूसरे हिस्सों में जा नहीं पा रहे हैं

भोपाल

मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता पहले चरण के चुनाव में उनके घर में ही 'कैद' हो गए हैं। कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह तक अपने गढ़ों यानी चुनाव क्षेत्रों में सिमटे हुए हैं। अब भाजपा ने उनकी ऐसी घेराबंदी की है कि वे प्रदेश के दूसरे हिस्सों में जा नहीं पा रहे हैं। कमलनाथ अपने बेटे की जीत तय करने के लिए छिंदवाड़ा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो दिग्विजय सिंह अपनी साख बचाने के लिए राजगढ़ में ही सीमित हैं। भाजपा की कोशिश है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं को उनके घर में ही घेरे रखना है। छिंदवाड़ा में लगातार इसके लिए कमलनाथ के वफादारों को भाजपा तोड़ रही है। वहीं, विधानसभा चुनाव में ही दिग्विजय सिंह को उनके गढ़ में चुनौती देकर डरा दिया है। अब प्रदेश में पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार और पार्टी की जीत का पूरा दारोमदार पीसीसी चीफ जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार पर आ गया है।

मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव चार चरणों में होना है। इसमें प्रथम चरण में 19 अप्रैल को सीधी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, जबलपुर, मंडला और शहडोल सीट पर मतदान होगा। इन सीटों पर भाजपा के दिग्गज नेताओं का प्रचार शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव लगातार दौरे कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के दो दिग्गज और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दो सीटों पर ही उलझे हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने राजगढ़ से प्रत्याशी बनाया है, वहीं, पूर्व सीएम कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ के प्रचार और छिंदवाड़ा अपने गढ़ को बचाने के लिए डटे हुए हैं। ऐसे में ये नेता दूसरी सीटों पर प्रचार के लिए नहीं निकल पा रहे हैं। छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस से सांसद और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ मैदान में हैं। छिंदवाड़ा कांग्रेस का गढ़ है और अभी तक अजेय रहा है। भाजपा ने इस बार प्रदेश की 29 में से 29 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। 2014 में मोदी लहर में भी भाजपा छिंदवाड़ा सीट को नहीं जीत पाई थी।

सिर्फ पटवा छिंदवाड़ा से जीते थे
छिंदवाड़ा से अब तक सिर्फ 1997 के उप चुनाव में भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा चुनाव जीते, लेकिन इसके एक साल बाद ही आम चुनाव में कमलनाथ ने दोबारा कब्जा कर लिया। कमलनाथ छिंदवाड़ा से अब तक 9 बार सांसद बने। 2019 के चुनाव में प्रदेश की 29 में से 28 सीटें भाजपा ने जीती थी, लेकिन छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस का दबदबा कायम रहा था। यहां भाजपा ने कमलनाथ और नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलें समाप्त होने के बाद उनके करीबियों को तोड़ने की रणनीति बनाई। इसमें भाजपा सफल होते भी दिख रही है। कमलनाथ के करीबी विधायक कमलेश शाह, छिंदवाड़ा से महापौर विक्रम अहाके को भाजपा तोड़ने में कामयाब रही। उनके विश्वनीय दीपक सक्सेना ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।

चुनाव जितना नाथ के लिए चुनौती
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए उनके गढ़ छिंदवाड़ा को बचाना अब चुनौती से कम नहीं है। उनके करीबी एक के बाद एक लगातार पार्टी छोड़ रहे हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने बहुत कम मार्जिन से जीता। विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ सिर्फ 25 हजार वोटों से ही चुनाव जीते। ऐसे में अब वह छिंदवाड़ा में इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि कमलनाथ अपने गढ़ को बचाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं। यह चुनाव उनके लिए कठिन होता जा रहा है। इसलिए वह छिंदवाड़ा से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं।

दिग्विजय आखिरी चुनाव बता मांग रहे समर्थन
वहीं, कांग्रेस ने राजगढ़ सीट पर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है। वह टिकट के एलान के पहले भी राजगढ़ पहुंचे गए और अपना आखिरी चुनाव बताकर जनता से समर्थन मांगा। 75 साल के दिग्विजय सिंह 1984 और 1991 से राजगढ़ से सांसद चुने गए थे। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी। सिंह चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे लेकिन शीर्ष नेतृत्व के कहने पर वह चुनाव लड़ने को तैयार हो गए।  भोपाल से 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था। दिग्विजय सिंह की पकड़ प्रदेश के जमीनी कार्यकर्ताओं से है। उनको भाजपा हिंदूत्व के मुद्दे पर लगातार घेरती रहती है। भाजपा को उनको राजगढ़ में घेरने की रणनीति पर काम कर रही है।

इसलिए है दिग्गी के लिए चुनौती
राजगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले दो बार से भाजपा का कब्जा है। 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ विधानसभा सीटों में सिर्फ दो पर कांग्रेस को जीत मिली। चाचौड़ा से उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव हार गए। गृह नगर राघौगढ़ से उनके बेटे जयवर्धन सिंह बहुत कम वोटों से विधानसभा का चुनाव जीत पाए। पिछले चुनाव में भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर से उनको साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। अब उनको डर सता रहा है कि कहीं चुनाव हार ना जाएं। दिग्विजय सिंह अब राजनीति से संन्यास लेने की उम्र में है। ऐसे में वह सम्मान जनक विदाई चाहते हैं। इसलिए उन्होंने अपने आपको राजगढ़ में ही झोंक दिया है।


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