.

हिजाब विवाद: सिख धर्म से तुलना पर कोर्ट ने किया ‘5K’ का जिक्र | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | कर्नाटक राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सिख धर्म में “5K”- केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा का जिक्र किया और कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने मामले में एक याचिकाकर्ता की ओऱ से पेश हुए एक वकील की ओर से सिख धर्म और पगड़ी का उदाहरण दिए जाने के बाद यह टिप्पणी की।

 

कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भी सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से मुस्लिम और सिख के बीच समानता नहीं बनाने के लिए कहा। इसके साथ-साथ कोर्ट ने कहा कि हिजाब से सिख धर्म की प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है क्योंकि सिखों के लिए पगड़ी और कृपाण पहनने की अनुमति है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सिख धर्म के ‘5K’ का जिक्र भी किया है।

 

सिख धर्म की प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं

 

पीठ ने कहा, सिख धर्म में अधिकारों या प्रथाओं की तुलना करना बहुत उचित नहीं है। कोर्ट ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि यह सिखों द्वारा कृपाण ले जाने की अनुमति देता है। इसलिए इन प्रथाओं की तुलना न करें क्योंकि उन्हें 100 साल से पहले ही मान्यता दी गई है।

 

हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं जिसमें कहा गया है कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया जा सकता है।

 

सिख धर्म की प्रथाएं अच्छी तरह से स्थापित हैं

 

याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए बहस करते हुए अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि अनुच्छेद 25 में केवल कृपाण का उल्लेख है अन्य “के” का नहीं है। जिसके बाद कोर्ट ने कहा, ‘हम कह रहे हैं कि सिख धर्म के साथ कोई समानता न बनाएं। बस इतना ही। हम यही कह रहे हैं।’ कारा और पगड़ी के बारे में तर्क दिए जाने पर पीठ ने कहा कि सिख धर्म में प्रथाएं अच्छी तरह से स्थापित हैं और देश की संस्कृति में अच्छी तरह से निहित हैं।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पे तारीख’ कोर्ट बने… मैं नहीं चाहता- जस्टिस चंद्रचूड़ | ऑनलाइन बुलेटिन

 

 

 

 

 


Back to top button