.

कोर्ट ने क्यों कहा- उधार दिए रुपये केवल कागज के टुकड़े, जानिए पूरा मामला kort ne kyon kaha- udhaar die rupaye keval kaagaj ke tukade, jaanie poora maamala

खंडवा | [कोर्ट बुलेटिन] | नोटबन्दी के दौरान उधार दिए गए पैसों को लेकर मध्य प्रदेश की खंडवा कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। इस मामले में कोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उस समय उधार दिए गए रुपये केवल कागज के टुकड़े थे। इसलिए उन्हें वह वापस करने की जरूरत नहीं। अतः ऐसी मुद्रा के आधार पर पवन को सजा ना देकर उसे दोषमुक्त किया जाता है।

 

कोर्ट ने कहा कि देनदार को पता था कि नोटबंदी में रुपये केवल बैंक में जमा करना है। उसने जानबूझकर लेनदार को रुपये उधार दिए। उन रुपयों की बाजार में कोई कीमत नहीं थी वे केवल कागज के टुकड़े थे।

 

दरअसल नोटबंदी के दौरान उधार दिए गए 2.50 लाख रुपये के एवज में लेनदार द्वारा दिया गया चेक बाउंस हो गया। देनदार ने न्यायालय में चेक बाउंस का केस लगा दिया। 6 साल तक चली सुनवाई के बाद न्यायालय ने केस में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा देनदार को पता था कि नोटबंदी में रुपये केवल बैंक में जमा करना है।

 

उसने जानबूझकर लेनदार को रुपये उधार दिए। उन रुपयों की बाजार में कोई कीमत नहीं थी, वे केवल कागज के टुकड़े थे। उधार देने वाले ने आरबीआई व भारत सरकार के जारी राजपत्र के निर्देशों का उल्लंघन किया है, इसलिए उधारी चुकाने वाला दोषी नहीं है। उसे दोषमुक्त किया जाता है।

 

संतोष नाम के एक शख्स से रामनगर में रहने वाले पवन से अपना कर्ज चुकाने के लिए नवंबर 2016 में 2.50 लाख रुपये नकद उधार लिए थे। सभी नोट 500 व 1000 रुपये के थे। इसके बाद अपना कर्ज चुकाने के लिए पवन ने इतनी ही राशि का एक चेक संतोष को दिया था।

 

यह चेक सिविल लाइन स्थित पंजाब बैंक में 16 जनवरी 2017 को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया। 6 अप्रैल 2017 को वह चेक खाते में राशि नहीं होने पर बाउंस हो गया। संतोष ने वकील के माध्यम से केस न्यायालय में प्रस्तुत किया। मामले में जब न्यायालय ने संतोष से जवाब-तलब किए तो उसने स्वीकार किया कि उसने नोटबंदी के दौरान रुपये उधार दिए थे। 500 व 1000 के नोटों की संख्या कितनी थी उसे याद नहीं।

 

भारत सरकार के राजपत्र एवं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निर्देश के अनुसार जब पूरे भारत में 8 नवंबर 2016 के बाद 500 एवं – 1000 के नोटों का केवल बैंक के माध्यम से ही व्यवहार करने के निर्देश गए थे, तो लेनदार ने रुपये उधार क्यों दिए। उसे उन रुपयों को बैंक में जाकर जमा करवाना था। मामले में 9 जून 2022 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने फैसला सुनाया।

 

फैसले में न्यायालय ने टिप्पणी की कि संतोष ने पवन को जो राशि उधार दी थी उस मुद्रा का बाजार में कोई मूल्य नहीं था। वह मुद्रा मात्र एक उपयोग विहीन एवं मूल्य रहित साधारण कागज का एक टुकड़ा है। अतः ऐसी मुद्रा के आधार पर पवन को सजा ना देकर उसे दोषमुक्त किया जाता है।

 

 

Why did the court say – loaned money only pieces of paper, know the whole matter

 

Khandwa | [Court Bulletin] | The Khandwa court of Madhya Pradesh has given an important decision regarding the money lent during the notebandi. In this case, the court acquitted the accused saying that the money lent at that time was just pieces of paper. So they don’t need to return it. Therefore, by not punishing Pawan on the basis of such mudra, he is acquitted.

 

The court said that the debtor knew that in demonetisation, the money was to be deposited only in the bank. He knowingly lent Rs. Those money had no market value, they were just pieces of paper.

 

In fact, the check given by the creditor in lieu of Rs 2.50 lakh lent during demonetisation bounced. The debtor filed a check bounce case in the court. After hearing for 6 years, the court has given the verdict in the case. The court said that the debtor knew that in demonetisation, the money was to be deposited only in the bank.

 

He knowingly lent Rs. Those money had no market value, they were just pieces of paper. The lender has violated the instructions of the Gazette issued by the RBI and the Government of India, so the defaulter of the borrower is not guilty. He is acquitted.

 

संतोष नाम के एक शख्स से रामनगर में रहने वाले पवन से अपना कर्ज चुकाने के लिए नवंबर 2016 में 2.50 लाख रुपये नकद उधार लिए थे। सभी नोट 500 व 1000 रुपये के थे। इसके बाद अपना कर्ज चुकाने के लिए पवन ने इतनी ही राशि का एक चेक संतोष को दिया था।

 

यह चेक सिविल लाइन स्थित पंजाब बैंक में 16 जनवरी 2017 को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया। 6 अप्रैल 2017 को वह चेक खाते में राशि नहीं होने पर बाउंस हो गया। संतोष ने वकील के माध्यम से केस न्यायालय में प्रस्तुत किया। मामले में जब न्यायालय ने संतोष से जवाब-तलब किए तो उसने स्वीकार किया कि उसने नोटबंदी के दौरान रुपये उधार दिए थे। 500 व 1000 के नोटों की संख्या कितनी थी उसे याद नहीं।

 

भारत सरकार के राजपत्र एवं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निर्देश के अनुसार जब पूरे भारत में 8 नवंबर 2016 के बाद 500 एवं – 1000 के नोटों का केवल बैंक के माध्यम से ही व्यवहार करने के निर्देश गए थे, तो लेनदार ने रुपये उधार क्यों दिए। उसे उन रुपयों को बैंक में जाकर जमा करवाना था। मामले में 9 जून 2022 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने फैसला सुनाया।

 

फैसले में न्यायालय ने टिप्पणी की कि संतोष ने पवन को जो राशि उधार दी थी उस मुद्रा का बाजार में कोई मूल्य नहीं था। वह मुद्रा मात्र एक उपयोग विहीन एवं मूल्य रहित साधारण कागज का एक टुकड़ा है। अतः ऐसी मुद्रा के आधार पर पवन को सजा ना देकर उसे दोषमुक्त किया जाता है।

 

 

 

विद्रोही होने का विरासत vidrohee hone ka viraasat

 

 


Back to top button