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केस इंसानियत के नजरिए से देखें, कानून के साथ संतुलन बनाने की भी जरूरत क्योंकि वे मनुष्यों के साथ व्यवहार कर रहे हैं न कि फाइलों और आदेशों के साथ, दिल्ली हाई कोर्ट ने क्यों कहा संवेदनशीलता बहुत जरूरी? यहां जानें | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी उम्रकैद की सजा काट रहे एक हत्या के दोषी की याचिका पर विचार करते हुए की, जिसने अपनी पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे को निपटाने के लिए दो महीने की पैरोल मांगी थी। ताकि अपने परिवार के लिए पैसों की व्यवस्था कर सके और मां की मृत्यु के बाद परिवार के लिए जीवन-यापन की व्यवस्था कर सके। याचिकाकर्ता के पैरोल के अनुरोध को दिल्ली सरकार ने कई आधारों पर ठुकरा दिया था।

 

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को संवेदनशीलता और करुणा बनाए रखने की जरूरत है। साथ ही कानून के साथ संतुलन बनाने की भी जरूरत है क्योंकि वो मनुष्यों के साथ व्यवहार कर रहे हैं न कि केवल फाइलों और आदेशों के साथ।

 

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता को 45 दिनों के लिए पैरोल पर रिहा करने का निर्देश देते हुए कहा कि नियम और कानून के साथ संतुलित संवेदनशीलता और करुणा को किसी भी अदालत द्वारा बनाए रखा जाना चाहिए क्योंकि अदालतें इंसानों के साथ व्यवहार कर रही है। पीठ ने कहा कि मुकदमों को महज फाइल व आदेश के रूप में ना देखा जाए।

 

याचिकाकर्ता ने 14 साल जेल में बिताया है और पहले सात मौकों पर उसे पैरोल दी गई थी। उसने न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी मां को खो दिया है। अब अपनी मां की मृत्यु के बाद ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई हैं कि उसे उनमें शामिल होकर अपने परिवार के भविष्य के लिए व्यवस्थाएं करनी हैं।

 

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि पैरोल देने पर विचार करते समय, अदालत को इस तथ्य से भी अवगत रहना होगा कि याचिकाकर्ता को आजीवन कारावास की सजा दी गई है। पिछले 14 सालों में ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई हैं, जिन पर उसे ध्यान देने की जरूरत है।

 

अदालत ने याचिकाकर्ता से 25 हजार रुपए का निजी मुचलका जमा करने को कहा, जबकि दिल्ली में उसका कोई रिश्तेदार नहीं होने के कारण जमानती पेश करने की जरूरत खत्म हो गई। अपने आदेश में पीठ ने कहा कि पिछले दो वर्षों में, याचिकाकर्ता हिंसा से जुड़े किसी भी अपराध में शामिल नहीं था।

 

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को पहले सात मौकों पर पैरोल दी गई थी और उसने स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया था। याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश देते हुए पीठ ने उसे अपना पासपोर्ट सरेंडर करने, अपना मोबाइल नंबर हर समय चालू रखने और किसी भी गैरकानूनी कृत्य या चूक में शामिल नहीं होने को कहा है।

 

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