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शिकायतकर्ता से जिरह का आरोपी को अधिकार, कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला, पढ़ें | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आरोपी, शिकायतकर्ता से जिरह करने का दावा कर सकता है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है। यह आम कानून है कि जिरह का अधिकार आरोपी का मूल्यवान अधिकार है। किसी मामले को खासकर इस आधार पर बंद नहीं किया जा सकता कि उसने अंतरिम क्षतिपूर्ति रकम का भुगतान नहीं किया।

 

कोलार के होहाल्ली गांव के मुरली तथा कोलार के किलारिपेट के वेंकेटेशप्पा के बीच पैसों का लेन-देन हुआ था। मुरली का 10 लाख रूपये का चेक नहीं भुन पाया था जिससे आपराधिक मामला बना था।

 

मजिस्ट्रेट अदालत ने मुरली को सुनवाई के लंबित रहने तक उस रकम का दस फीसद हिस्सा क्षतिपूर्ति के रूप में जमा करने का आदेश दिया था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। मजिस्ट्रेट अदालत ने वेंकेटेशप्पा से जिरह करने के उसके आवेदन को मंजूर नहीं किया था। तब मुरली उच्च न्यायालय चला गया।

 

अदालत ने मुरली के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा, मजिस्ट्रेट ने अंतरिम मुआवजे के दस फीसदी के भुगतान के आधार पर जिरह से वंचित कर भारी गलती की है। उनका फैसला नूर मोहमद बनाम खुर्रम पाशा मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के विरूद्ध है।

 

शीर्ष अदालत स्पष्ट रूप से व्यवस्था देती है कि यदि अंतरिम मुआवजा नहीं दिया जाता है तो उसे जुर्माने के तौर पर वसूला जा सकता है।

 

उच्च न्यायालय ने कहा, यह आम कानून है कि जिरह का अधिकार आरोपी का मूल्यवान अधिकार है। ऐसे मूल्यवान अधिकार को अंतरिम क्षतिपूर्ति के भुगतान की शर्त पर वापस नहीं लिया जा सकता क्योंकि उसके लिए कानून में अपने आप में उपचारात्मक उपाय है। ऐसे उपाय का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

 

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