.

धम्मपदं- अप्रमादी, ध्यानी, काम भोगों से दूर परमसुख पाता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ.एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

मा पमादमनुयुञ्जेथ, मा कामरतिसन्थवं

अप्पमत्तो हि झायन्तो, पप्पोति विपुलं सुखं।।

 

प्रमाद मत करो, अपने को प्रमाद में मत जोड़ो, न ही काम-रति में लिप्त होओ, काम-भोगों में लिप्त होकर मत फंसो। जो व्यक्ति प्रमादरहित होकर ध्यान करता है, वह बहुत सुख पाता है, निर्वाण के परम सुख को पाता है।

 

जो व्यक्ति प्रमाद (असावधानी) में लगा रहता है, जो मूर्छा, मदहोशी में सोया रहता है, लापरवाह होता है। जो जानता है कि अमुक मार्ग में कुंआ है फिर भी उस ओर चलता है। जानता है कि आग में हाथ डालने से हाथ जलेगा, फिर भी बार-बार डालता है, पुराने घाव भी नहीं भर पाते और फिर हाथ डाल देता है यह प्रमाद है।

 

प्रमादी मनुष्य, सावधान, जागरूक नहीं होता है वह इंद्रिय विषयों में सुख ढूंढता है, वह अपने को काम-रति, काम-क्रीड़ा, काम-सुख से जोड़ता है। मैथुन काम-रति है। पद प्रतिष्ठा की प्रबल इच्छी भी काम-रति है।

 

सदाचार जीवन के अलावा रूप, गंध, शब्द, स्वद स्पर्श के सुखों की जितनी कामनाएं इच्छाएं हैं सब काम-रति है। इस गाथा में काम-रति यानी स्त्री-पुरुष के सहवास पर अधिक जोर दिया गया है।

 

तथागत कहते हैं-प्रमाद मेें मत लगे रहो, काम-रति में मत डूबे रहो। काम-रति, काम-वासना की भावना को उत्तेजित करने के लिए आसपास का माहौल भरा पड़ा है। अप्रमादी व्यक्ति बार-बार इसी पर सोचता विचारता है, शारीरिक सुंदरता को पाने के लिए पागल सा हो जाता है।

 

उसे मालूम है कि इसमें लिप्त होना दुखदायी है लेकिन वह क्षणिक सुख के लिए सारी सीमाएं लांघ लेता है। उसे दूसरे से सुख पानी की झूठी चाह रहती है। बार-बार अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहता है जिसका परिणाम बुरे ही होते हैं। परिवार व समाज में सम्मान खो बैठता है सुख शांति की बजाय दुख मोल ले लेता है।

 

सच्चा सुख, विपुल सुख, बहुत सुख, अनंत सुख तो तब मिलता है जब व्यक्ति प्रमाद छोड़कर ध्यान करता है। ध्यान का अर्थ है सजगता, जाग्रत चित्ता, चित्त को स्मृति में स्थापित करना और प्रमाद का अर्थ है सोया हुआ चित्त, असावधान चित्त।

 

प्रमादी व्यक्ति शरीर की सुंदरता, काम वासना की ओर ही आकर्षित होता है। उसी को वह सुख समझता है। बाहरी व्यक्ति और वस्तु में उसे सुख दिखाई देता है वह बर्हिमुखी रहता है लेकिन प्रमाद रहित व्यक्ति अंर्तमुखी होकर ध्यान करता है, वह दूसरे में रमण में सुख तलाशने की बजाए स्वयं के रमण से सच्चा सुख पाता है।

 

कामवासना में डूबा व्यक्ति दूसरे से सुख की आशा करता है जबकि ध्यान मेें लीन व्यक्ति स्वयं में सुख की खोज कर अंतत: सुख पाता है और जिसने स्वयं को जान लिया, स्वयं को पा लिया उसने सब पा लिया, विपुल सुख पा लिया।

 

जो क्षणिक सुख के लिए बाहर भटकता है उसे दुख और निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिलता। और जिसे यह बात समझ आ जाती है कि हमारे सुख की चाबी स्वयं के पास है वह ध्यान की ओर मुड़ता है स्वयं की ओर जाता है मन को वश में करने का अभ्यास करता है।

 

चित्त के विकारों को मिटाकर निर्मल चित्त वाला हो जाताा है। सुख शांति का जीवन जीता है।

 

    सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो 

 

ये भी पढ़ें:

रीति नीति से प्रभावित होकर मायावती की बीएसपी में शामिल होगा योगी की तारीफ करने वाला अतीक परिवार? पत्‍नी को प्रयागराज से मेयर चुनाव लड़ने की तैयारी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

 


Back to top button