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धम्मपद गाथा- बुद्धों का श्रावक अपनी प्रज्ञा से जग में प्रकाशमान होता है; भीड़ को चीरकर पार करने की उसमें क्षमता और योग्यता होती है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

 


 

यथा सकरधानस्मिं, उज्झितस्मि महापथे।

पदुम तत्थ जायेथ, सुचिगन्धं मनोरमं।।

 

(Dhammapada Gatha – The follower of the Buddhas shines in the world by his wisdom; He has the ability and ability to cut through the crowd) जिस प्रकार किसी बड़े मार्ग के किनारे फैले हुए कूड़े के ढेर पर कोई सुगंधित सुंदर कमल या अन्य कोई भी फूल खिल आता है। इसी प्रकार कूड़े के समान अज्ञानी, मूढ़ और अधाम्मिक लोगों में सम्यक सम्बुद्ध का श्रावक (शिष्य) अपनी प्रज्ञा के प्रकाश से अधिक चमकता है, सुशोभित होता है।

 

भगवान बुद्ध के शिक्षा सूत्रों में श्रावक (सावक) का अर्थ है शिष्य, श्रोता। जिसने बुद्ध को स्थित चित्त से गंभीर होकर सुना। बुद्ध के प्रति सिर्फ श्रद्धा के कारण नहीं बल्कि सद्-धम्म के मार्ग पर चलने के लिए सुना, दुखों से मुक्ति के लिए जीवन जीने की कला सीखने के लिए सुनने वाला व्यक्ति श्रावक कहलाता है।

 

तथागत के कथन के अनुसर सम्यक सम्बुद्धों का श्रावक दूसरों से बहुत अलग होता है। संसार में रहते हुए संसार से दूर रहता है। कीचड़ में उगता है लेकिन उपर उठकर फूल बनकर कीचड़ से अलग ऊंचा उठ जाता है।

 

तथागत का श्रावक सामान्य लोगों के कूड़े-करकट की भीड़ में कमल की तरह खिलकर अलग पहचान बनाता है। भीड़ को चीरकर पार करने की उसमें क्षमता, योग्यता होती है। प्रज्ञावान, सदाचार से सम्पन्न व्यक्ति कीचड़ के समान कितनी ही बदबूदार, दलदलभरी विपरीत परिस्थितियां हो, वह अपने शील और प्रज्ञा के बल पर सुगंधित फूल की तरह शोभायमान होता है। सिर्फ स्वयं ही सुशोभित नहीं होता है बल्कि समाज में भी शील की सुगंध फैलाता है।

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सम्यक सम्बुद्ध अर्थात अपनी खोज, अपने अनुभव से सत्य को पाने वाले, बुद्धत्व को पाने वाले। ऐसे बुद्धों का श्रावक, शिष्य, श्रोता यदि प्रज्ञावान है, ज्ञानवान है तो वह सामान्य लोगों के बीच जन्म लेकर भी अपनी प्रज्ञा से प्रकाशमान होता है और जगत में उजियारा फैलाता है।

 

सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो

 

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