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धम्मपद- मन, वाणी और शरीर से पाप (बुरे) कर्म करने वाला दुखी रहता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार7q

©डॉ.एम. एल. परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

इध सोचति पेच्च सोचति, पापकारी उभयत्थ सोचति।।

सो सोचति सो विहञ्ञति, दिस्वा कम्मकिलि_मत्तनो।।

 

पाप (बुरे) कर्म करने वाला व्यक्ति यहां और वहां अर्थात इस लोक में और मरने के बाद परलोक में भी शोक करता है। दोनों जगह शोक करता है, पश्चाताप करता है। वह अपने मैले कर्मों को देखकर शोक करता है और दुखी होता है।

 

व्यक्ति के मन में राग, द्वेष, क्रोध, घृणा, मोह, लोभ उत्पन्न होने पर वह मन,वाणी और शरीर से अकुशल, पाप (बुरे) कर्म करता है तो उसका परिणाम तुरंत और बाद में भी जरूर मिलता है। वर्तमान में भी दुखी होता है और भविष्य में भी दुखी होता है फिर पछतावा करता है। और जब इन विकारों को दूर कर मन को शुद्ध कर देता है तो सुख शांति का जीवन जीता है।

 

बुरे, पाप कर्मों का फल उसी प्रकार पीछा करता है जैसे बैलगाड़ी के बैल के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है और कुशल, अच्छे कर्मों का सुखद फल वैसे ही साथ रहता है जैसे कभी साथ न छोड़ने वाली छाया। अच्छे या बुरे कर्मों का फल आज नहीं तो कल, देर-सवेर जरूर मिलता है।

 

आकाश में कोई काल्पनिक शक्ति या व्यक्ति नहीं है जो पाप-कर्मों का दंड देगा, न कोई लेखा-जोखा रखता है बल्कि पाप करने वाला स्वयं ही बुरे कर्मों का फल भोगता है उसकी जीवन शैली ही ऐसी होती है कि वह इनके परिणामों से बच नहीं पाता है।

 

वह इस लोक में भी शोक (दुख) करता है और परलोक में भी, पापी दोनों जगह शोक करता है। वह वर्तमान में कर्मों के बुरे परिणामों को पाकर रोता है, पछताता है और दुखी रहता है और भविष्य में भी यही हाल होता है।

 

तथागत कहते हैं – यह मत समझना कि इस शरीर के नष्ट हो जाने, मृत्यु हो जाने पर पाप के परिणाम समाप्त हो जाएंगे। मृत्यु के समय चित्त की चेतना के साथ ही कर्म फल आगे चलते हैं और जब तब निर्वाण नहीं प्राप्त होता तब उसका भवचक्र चलता ही रहता है।

 

पुण्य (अच्छे) कर्म करने वाला प्रसन्न रहता है

 

इध मोदति पेच्च मोदति, कतपुञ्जो उभयत्थ मोदति।

सो मोदति सो पमोदति, दिस्वा कम्मविसुद्धिमत्तनो।

 

पुण्य (कुशल) कर्म करने वाला व्यक्ति प्रसन्न रहता है। इस लोक में मोद (प्रसन्न) रहता है और मरने के बाद परलोक में भी प्रसन्न रहता है। पुण्य कर्म करने वाला लोक-परलोक दोनों जगहों में प्रसन्न होता है। वह अपने पुण्य कर्मों को देखकर प्रसन्न (मुदित) होता है, अति प्रसन्न होता है।

 

मन के विकारों से मुक्त व्यक्ति जीवन जीने की कला सीख लेता है, उसी के अनुसार जीता है। वह मन को वश में कर, इंद्रियों के संयत कर अच्छे कर्म करता है, सुख शांति का जीवन जीता है। वह वर्तमान में मुदित होता है, अनंदित होता है और अपने कर्मों की शुद्धता को देखकर भविष्य में भी बहुत प्रसन्न होता है।

 

       सबका मंगल हो… सभी प्राणी सुखी हो

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