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धम्मपदं: चित्त बहुत चंचल है, प्रज्ञावान लोग इस पर काबू कर तीर बाण की तरह सीधा सरल कर देते हैं | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

फन्दनं चपलं चित्त, दुरक्खं दुन्निवारयं ।

उजु करोति मेधावी, उसुकारो व तेजन ।।

 

चित्त चंचल है, चपल है। इसे एकाग्र करना और भटकने से रोकना बहुत मुश्किल है। किंतु मेधावी पुरुष (प्रज्ञावान मनुष्य) इसको उसी तरह सरल और सीधा कर लेता है जैसे बाण (तीर) बनाने वाला बाण को।

 

भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में चित्त (मन) के बारे में बहुत कहा गया है। तथागत कहते हैं कि मन ही मनुष्य की सारी प्रवृत्तियों का अगुआ है, सभी कर्मों का प्रधान है, सारे विचार चित्त से ही उत्पन्न है. हमारा दुख-सुख चित्त पर निर्भर करता है। मन पूर्वगामी है, प्रमुख है, मनोमय है। इसलिए चित्त के स्वभाव और जीवन में इसके महत्व के बारे में जानना बहुत जरूरी है। बुद्ध धम्म में चित्त के समान अन्य भाषाओं में ऐसा शब्द नहीं है अत: चित्त का सामान्य अर्थ मन, चेतना (mind) ही है।

 

चित्त का कोई रूप, आकार, ऊर्जा, वजन या स्थान नहीं होता है इसे सिर्फ अनुभव से जान सकते हैं। सुख-दुख, राग-द्वेष, क्रोध, मोह, लोभ, घृणा जैसे विकार और प्रेम, करूणा, दया, मैत्री आदि गुण चित्त के गुण हैं जिसे हम चैतसिक (mental states) कहते हैं।

 

चित्त यानी गहरा शांत समुद्र और हवा, तूफान से पैदा होने वाली लहरें, चैतसिक हैं, चित्त की वृतियां हैं। चित्त को आत्मा (soul) कहना गलत है क्योंकि बुद्ध धम्म में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।

 

प्राकृतिक और स्वभाविक रूप से चित्त शांत व स्थिर रहता है जैसे समुद्र का पानी। लेकिन तेज हवा, तूफान से समुद्र के जल में छोटी, बड़ी खतरनाक लहरें उठती हैं उसी प्रकार बाहरी संसार के व्यक्तियों और वस्तुओं को देखकर चित्त में प्रतिक्रियाएं होती हैं, विचार पैदा होते हैं, मन, वाणी, शरीर से अच्छे-बुरे कर्म करते हैं। सांसारिक माहौल चित्त को स्थिर, शांत रहने नहीं देता, उकसाता है, भटकाता है। और धीरे-धीरे यह चित्त का स्वभाव ही बन जाता है।

 

मन क्षणिक है, चंचल है, चपल है और इसे वश में करना कठिन है, इसका निवारण कठिन है, इसे रोके रखना कठिन है। तथागत कहते हैं यह कोई दार्शनिक सिद्धांत नहीं है, यह तो प्राकृतिक सच्चाई है। इस सच्चाई को समझो और अपने अनुभव से जानो, पहचानो।

 

मेधावी, प्रज्ञावान व्यक्ति चित्त की इस चंचल, चपल, कुटिल, मुश्किल से वश में होने वाले स्वभाव को जानकर जैसे बाण बनाने वाला बाण को सीधा करता है, वैसे ही चित्त को एकाग्र कर, वश में कर शांत, स्थिर, साफ और सरल कर लेता है।

 

हर मनुष्य में वही क्षमता है जो तथागत में थी, बस उसे पहचानने और उपयोग में लेेने की आवश्यकता है। मन भले ही चंचल, चपल है लेकिन मनुष्य अपने दृढ़ संकल्प और प्रयास से इसे काबू कर, मन के विकारों को दूर कर सुख शांति का जीवन प्राप्त कर सकता है।

 

सबका मंगल हो …सभी प्राणी सुखी हो

 

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.

 

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