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ढाई हजार साल बाद आज भी कितने जरूरी और सुखदायक लगते हैं वधु के सुखी परिवार के लिए वे 10 उपदेश…

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


Nagarseth Dhananjay of Saket (Ayodhya) and his daughter Visakha were the supreme worshipers of Lord Buddha. He had given ten auspicious instructions while leaving his daughter after getting married, following which she remained happy throughout her life. Father-in-law Shravasti’s Seth Migar, being great in knowledge, accepted Visakha as his ‘mother’ despite being a daughter-in-law and Vishakha became immortal in history as ‘Migar Mata’.

 

भगवान बुद्ध के परम उपासक थे, साकेत (अयोध्या) के नगरसेठ धनंजय और उनकी बेटी विशाखा. उन्होंने बेटी का विवाह कर विदा करते समय दस मांगलिक उपदेश दिए थे, जिनका पालन कर वह आजीवन सुखी रही. ससुर श्रावस्ती के सेठ मिगार ने ज्ञान में महान होने के कारण विशाखा को पुत्रवधू होने के बावजूद भी अपनी ‘माता’ स्वीकार किया और इतिहास में विशाखा ‘मिगार माता’ के नाम से अमर हो गई.

happy family of the bride

ये उपदेश यूं तो सुनने में कुछ अटपटे लगते हैं. बहू विशाखा के ससुर मिगार को भी अजीब लगे थे, लेकिन समझने पर बात बिगड़ते बिगड़ते बच गई.

 

1.अंदर की आग बाहर नहीं ले जानी चाहिए….

 

यदि पति के परिवार में किसी व्यक्ति में कोई दोष दिखे या घर में कोई आपसी विवाद, कलह हो तो बहू को चाहिए कि उसे बाहर के लोगों को न बताएं. इससे बढ़कर घर की अन्य कोई आग बाहर नहीं ले जाई जा सकती.

 

2…बाहर की आग अंदर नहीं लानी चाहिए….

 

अड़ोस पड़ोस के व बाहर के अन्य लोग ससुर के परिवार के व्यक्तियों की निंदा करते हो, उन्हें अपशब्द कहते हो तो उन्हें सुनने पर घर में आकर नहीं कहना चाहिए. इससे बढ़कर बाहर की आग घर में नहीं लाई जा सकती.

 

3…देते हुए को ही देनी चाहिए….

 

घर में काम आने वाली कोई जरूरी चीज कोई उधार मांगने आए तो उसे दे देनी चाहिए, जो वायदे के अनुसार समय पर लौटा देता हो.

 

 4.. न देते हुए को न देनी चाहिए….

 

ऐसी वस्तु ऐसे व्यक्ति को नहीं देनी चाहिए जो वादा करके भी लौटाता नहीं हो. इससे वह जरूरी चीज वापस भी नहीं मिलती हैं और आपस में स्नेह संबंध भी बिगड़ जाते हैं.

 

 5.. देते हुए को भी और न देते हुए को भी देना चाहिए….

 

परंतु ऐसी कोई वस्तु जिसके न लौटाने पर भी हमारा काम चल सकता हो और उसका न लौटाना सह सकते हो, चाहे वह धनी हो या निर्धन, अनजान हो या मित्र, मांगने वाले को जरूर दे देनी चाहिए. भले ही वह वापस लौट आए या नहीं. इस तरह किसी की मदद समझ कर दी हुई वस्तु न लौटाए जाने पर मन में कटुता पैदा नहीं होती हैं.

 

 6…सुख से बैठना चाहिए…..

 

जब घर में सास, ससुर, जेठ व अन्य बड़े खड़े हो, तो वहां बहू का बैठे रहना उचित नहीं है, न सुख कर. सबके बैठ जाने पर ही उसका बैठना सुख से बैठना कहलाता है.

 

 7… सुख से खाना चाहिए……

 

इसी प्रकार सबको खिला चुकने के बाद ही ग्रहणी का स्वयं भोजन करना समीचीन है और वही उसके लिए सुख से खाना है.

 

8… सुख से सोना चाहिए……

 

घर का सारा काम काज पूरा करके बड़ों की उचित सेवा भाव कर लेने के बाद, उनके सो जाने पर ही बहू का सोना शोभनीय है और वही उसके लिए सुख से सोना है.

 

 9… अग्नि की परिचर्या करनी चाहिए…..

 

सास-ससुर,जेठ और परिवार के अन्य वृद्धजनों को अग्नि की तरह तेजस्वी मानकर सेवा करनी चाहिए.

 

10… अंदर के देवताओं को नमस्कार करना चाहिए…..

 

सास-ससुर और परिवार के अन्य वृद्ध जनों को कुल देवताओं की भांति पूज्य मानकर हमेशा उनका नमन और आदर सत्कार करना चाहिए.

 

संदर्भ– धम्मपद अट्ठकथा, विशाखासुत्त

 

ढाई हजार साल पहले दिये सद-धम्म के ये 10 मांगलिक और व्यवहारिक उपदेश आज भी कुल-वधु के लिए पालन करने योग्य हैं. सुखी परिवार के आधार हैं.

 

आप सभी श्रावस्ती की उस पावन धरा के जरूर दर्शन करें, जहां भगवान ने 45 वर्षावास किए थे. वहीं पर है मिगार माता द्वारा बुद्ध को संघ के लिए दान किए विशाल पूर्वाराम विहार का गौरव.

 

भवतु सब्बं मंगलं…..सबका मंगल हो….सभी प्राणी सुखी हो 

  

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