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नया मसोलिनी जन्मा है ? यूरोप बचे अब विभीषिका से | ऑनलाइन बुलेटिन

के. विक्रम राव

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

इटली के संसदीय निर्वाचन के ताजा घोषित परिणामों (25 सितम्बर 2022) से सिहरन होनी चाहिये। हर उस व्यक्ति को जो अमनपसंद है, मानवता का आराधक है। ‘‘ब्रदर्स आफ इटली‘‘ पार्टी की 45-वर्षीया अध्यक्षा जियार्जी मेलोनी को अधिक सीटे पाने के संकेत हैं। अतः उनका प्रधानमंत्री बनना तय है। कैसा विरोधाभास है ? उनका नाम (मेलोनी) इतालवी विद्रोहियों के एक गीत ‘‘बेला सियाओं‘‘ (अलविदा सुंदरी) से उघृत है। उत्तर इटली के जमीन्दरों के विरोध में मांडीन खेतिहर मजदूरों द्वारा गाया जाता हैं। इस गीत का शीर्षक है विद्रूप ही, विडंबना है। इस गीत लहरी के विशेषण की नामधारी महिला मसोलिनी की प्रशांसिका है। समर्थक है, निखालिस दक्षिणपंथी का। वे छात्र नेता थी। तभी से अधिनायकवाद की हितैषी रही, कट्टर राष्ट्रवादी है, पर देशहितकारी नहीं। घोर कौमपरस्त जो घृणा और विखण्डन की घात्री, प्रसूतिका बनेगी। वह यूरोपिय संघ के विघटन की मुखालफत नहीं करेंगी। हालांकि विजय के बाद उन्होंने कहा कि: ‘‘इतालवी फैशिस्ट‘‘ अब इतिहास की बात है। मगर वे उस भयावह दर्शन-चिंतन को भूगोल में वापस लौटा लायेंगी। मेलोनी स्वेच्छा मृत्यु, गर्भपात, उदारवादी सियासत, संसदीय लोकतंत्र आदि की आलोचक है। वे हर उस सामाजिक व्यवस्था को नापसंद करती है जिसे रोमन ईसाई नहीं चाहता है। विदेश नीति में वह यूक्रेन को शस्त्र भेजना चाहती है। ताइवान की समर्थक है तथा चीन की घमकी की भर्त्सना करती हैं। उनके आंकलन में बेनिटो मसोलिनी गत सदी के सबसे बेहतरीन राजनेता थे। वे नवफैशिस्टों के अग्रज जियार्जी अलमिरांतों की समर्थक हे। वे नाजियों के नस्लवादी नीति के अभियानकर्ता है। नस्लवादी पत्रिका ‘‘ला दिफेफू देल्ला रज्जा‘‘ के संपादक रहे। यहूदियों के विनाश के वकालत करते है। मगर मेलोनी को अरबों को शत्रु कहलाना अच्छा लगता है। वे अपने चुनावी तकरीरों में एडोल्फ हिटलर तथा नाजीवाद की आज ज्यादा आवश्यकता बताती है। उनकी अकेली पुत्री जिनेवरा का विवाह संपादक वेलिस्कोनी पत्रकार के कर्मचारी से हुआ था। वेलिस्कोनी मीडिया मुगल और चार बार प्रधानमंत्री रहे। मेलोनी प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रचनेवाली हैं।

 

अब हर शांतिप्रिय नागरिक से जहां कहीं भी हो उसे मसोलिनी के इस आधुनिक संस्करण से पीड़ा और भय होना चाहिये। स्मरण आता है। संत्रास, दहशत होना स्वाभाविक है। पर मेलोनी के आज के जनसभा में दिये उदगार और बयासी साल पूर्व मसोलिनी के भाषण से तुलना करें। मसोलिनी ने (12 जून 1945) को इतालवी जनता को रेडियो भाषण में कहा था: ‘‘मैं आप लोगों को उस युद्ध में ले जा रहा हूं जिसे गत सितम्बर मास में हर हिटलर ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर आरम्भ किया था। मित्र राष्ट्र इस चुनौती के अप्रत्याशित होने की शिकायत नहीं कर सकते, क्योंकि युद्ध आरम्भ होने के बाद से ब्रिटेन व फ्रांस की निषिद्ध माल पर नियंत्रण‘‘ वाली नीति से इटालियन हितों को निरन्तर हानि पहुंच रही है। यह ठीक है कि ब्रिटेन व इटली में पहले कभी युद्ध नहीं हुआ। ऐतिहासिक महत्व के इस अवसर पर हम अपने सम्राट की वन्दना करते है और मित्र जर्मनी के प्रधान को भी समान भाव से सलाम करते हैं। प्रजातंत्री और फाशिस्ट इटली तीसरी बार अपने पैरों पर खड़ा हुआ है और पहले से ज्यादा बलवान व सुसंगठित है। इम अन्त में इटली, यूरोप व दुनिया को एक लम्बा शान्ति-युग प्रदान करने के लिये विजयी होंगे।‘‘ भीड़ ने मसोलिनी का भाषण तन्मय होकर सुना और गगनभेदी नारे लगाये। कभी समाजवादी और अध्यापक रहे थे। मसोलिनी वीभत्स्य का प्रतीक हो गया था।

 

एक पार्श्व कथा के रूप में महात्मा गांधी और मसोलिनी की भेंट का उल्लेख कर दूं। लंदन में गोलमेज सम्मेलन से भारत लौटते समय रोम में 12 दिसम्बर 1931 को हिंसा और अहिंसा की इन प्रतिमूर्तियों की भेंट हुयी। उनके प्रशिक्षु सैनिकों को लकड़ी की बंदूकों से परेड करते गांधीजी को दिखाया गया। बापू ने केवल एक ही शब्द कहा: ‘‘घृणास्पद।‘‘ मगर धर्मगुरू पोप पायस ने इस शांति के पुजारी से भेंट करने से इंकार कर दिया, क्यांेकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल नाराज हो जाते। फ्रेंच सहित्यकार रोमां रोलां जो बापू के मेजबान थे इन सबके गवाह रहे।

 

फिर मसोलिनी ने सरकार पर कब्जा कैसे कर लिया ? अक्टूबर 27/28, 1922, ठीक एक सदी पूर्व तीस हजार काली कमीज पहने युवाओं को लेकर रोम पर धावा बोला। हड़ताली रेल कर्मियों ने सबकी यात्रा फोकट में करायी। राजा विक्टर इमेनुअल को आंतकित कर उसके द्वारा उदार प्रधानमंत्री लुइगी फेक्टा को बर्खास्त कर संपूर्ण अधिकार मसोलिनी ने हथिया लिये। सुप्रीम कमांडर बन कर वह हिटलर से जुड़ गया। पूंजीपतियों, जागीदारों, उद्योगपतियों को बटोरकर वह राष्ट्र के कोष पर हावी हो गया।

 

फिर द्वितीय विश्वयुद्ध ! अपार जनहानि, संहार, विनाश। लेकिन विधि को कुछ और करना था। बादशाह एमानुएल ने मसोलिनी को बर्खास्त कर दिया। त्रस्त जनता ने उसे पकड़ा। मगर हिटलर की सेना ने छुड़ा लिया। उत्तरी इटली का कठपुतली शासक बना दिया। अप्रैल 1945 में मसोनिली और उसकी रखैल क्लारा पेत्ताशी को स्विट्जरलैण्ड भागते समय पकड़ लिया गया। रूसी कम्युनिस्टों ने दम्पत्ति को मौत के घाट उतारा (24 अप्रैल 1945)। दोनों के शव को जनता ने मिलान शहर में चौराहे पर उलटा लटकाया। सांस रूक गयी, दिल की धड़कन बंद हो गयी, तब दोनों को दफनाया गया।

 

अब समय रहते मेलोनी को उस दौर की विभीषिका का अनुमान लगाना चाहिये। फैशिस्म विश्व का नाश कर डालेगा। अब फिर हिटलर मसोलिनी नहीं चाहिये। मानवता हेतु।

 

उसी युग का एक बौद्धिक चुटकुला है। भारत में चर्चा के दौरान एक ने पूछा कि विश्व शान्ति कब होगी ? जवाब मिला ‘‘जब मसोलिनी की विधवा, टोक्यो में मरणासन्न टोजो को बतायेगी कि वह हिटलर के अंतिम संस्कार से लौट रही है।

 

 

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