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गो-वध कानूनों का असर ! बीजेपी शासित राज्यों में कम हो रही गोवंश की संख्या | newsforum

बेंगलुरु | कर्नाटक विधानसभा में गो-वध विरोधी कानून पास किया जा चुका है। हालांकि इस कानून पर गौर किए बिना ही विधानपरिषद के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने के बाद मुख्यमंत्री बीएस येडियुरप्पा ने शुक्रवार को कहा कि सराकर इसे प्रभाव में लाने के लिए अध्यादेश लाएगी। मुख्यमंत्री ने विधानपरिषद के सभापति के प्रतापचंद्र शेट्टी द्वारा ‘अकस्मात’ सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने का निर्णय लेने पर ऐतराज जताया और कहा कि सरकार ने मंगलवार को सदन की बैठक बुलाने का निर्णय लिया।

 

विधेयक में बताया ‘मवेशी’ (Cattel) की परिभाषा

बता दें कि कर्नाटक बीजेपी शासित सबसे नया राज्य है, जिसने मवेशियों के वध विरोधी सख्त विधेयक बनाया है। इस विधेयक की खासियत इसमें बताई ‘मवेशी’ (Cattel) की परिभाषा है। इसमें सिर्फ गाय, बैल और बछड़े ही नहीं, बल्कि नर और मादा भैंस भी शामिल हैं। जिसके चलते इससे समूच गोवंश को काटने पर रोक लग जाएगी। हालांकि यहां गौर करने वाली बात यह है कि जिन राज्यों में गोवध निषेध कानून प्रभावी ढंग से लागू है, वहां इनकी संख्या भी लगातार कम हो रही है।

live stock: टॉप टेन राज्यों में भैसों की संख्या (लाखों में)

गायों की तुलना में भैंस अधिक

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस  में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, गोवध-विरोधी कानूनों का प्रभाव और उन्हें आक्रामक तौर से लागू करने का असर आधिकारिक पशुधन गणना के आंकड़ों में देखा जा सकता है। साल 2012 और 2019 के बीच, यूपी, एमपी, गुजरात और महाराष्ट्र (जो एक साल पहले तक बीजेपी शासित राज्य था) में मवेशियों की आबादी में कमी देखी गई। हालांकि ये वही राज्य हैं जो भैंस की पशुगणना में अव्वल हैं। यूपी, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में भी आज गायों की तुलना में अधिक भैंस हैं।

 

पश्चिम बंगाल गायों के मामले में यूपी से आगे

2019 की पशुगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल गायों के मामले में यूपी से आगे निकल कर नंबर 1 हो गया। इसमें चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य में सभी जानवरों को मारने की अनुमति है। यहां केवल एक पशु वध ‘नियंत्रण’ कानून है। इसके तहत किसी भी जानवर का वध किया जा सकता है। इसके लिए सिर्फ पशु चिकित्सा अधिकारी से एक प्रमाण पत्र की आवश्यकता है ‘जानवर वध के लिए फिट है।’

 

मवेशी और भैंस एक साथ ‘गोजातीय’

बता दें कि कर्नाटक में लाया गया यह बिल अन्य राज्यों में बने कानूनों के विपरीत है। जिसका दायरा केवल गायों की प्रजाति तक ही सीमित है। इसमें गाय, बैल और बछड़े शामिल हैं, लेकिन भैंस नहीं जो अलग प्रजाति के हैं। मवेशी और भैंस एक साथ ‘गोजातीय’ कहलाते हैं।

live stock: टॉप टेन राज्यों में गायों की संख्या (लाखों में)

पांच साल तक की जेल का प्रावधान

कर्नाटक से पहले महाराष्ट्र में देवेंद्र फणनवीस की अगुवाई वाली पिछली भाजपा सरकार के तहत पशुवध विरोधी सबसे कठोर कानून बनाया था। महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2015 ने सांडों और बैलों के वध को अपराध बना दिया। ऐसा करने पर पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है। इससे पहले का कानून केवल गायों तक सीमित था और केवल छह महीने की जेल होती थी।

 

कर्नाटक में भैंस काटने पर 7 साल तक की कैद

बीएस येदियुरप्पा सरकार द्वारा लाया गया कर्नाटक गोवध विरोधी और मवेशी संरक्षण विधेयक महाराष्ट्र से परे है। पहली बार कोई व्यक्ति जो भैंस को मारेगा उस पर भी संज्ञेय अपराध करने का आरोप लगाया जा सकता है और उसे कम से कम तीन साल और ज्यादा से ज्यादा सात साल तक की जेल हो सकती है। यूपी और एमपी की सरकारों में भी अब तक भैंस काटने को अवैध नहीं बनाया है। कर्नाटक के कानून के अनुसार अगर किसी गो-वंशीय मवेशी की उम्र 13 साल से ज्यादा है तो उसे मारा जा सकता है। हालांकि डेयरी उद्योग के लोगों के नजरिए से यह ठीक नहीं है।

 

क्या है गाय और भैंस का साइकल पीरियड?

सामान्य गाय को युवावस्था में आने और गर्भाधान के लिए तैयार होने में 17-18 महीने लगते हैं। गर्भावस्था के 9-10 महीने  बाद यह पहला जन्म देती है। फिर 27-28 महीनों में दूध का उत्पादन शुरू होता है। तीन चार महीने के आराम के बाद  हर 13-14 महीने पर गाय बछड़े या बछिया को जन्म देती है। आमतौर पर किसान किसी गाय के पांच-छह बार जन्म देने के बाद उसे अपने पास नहीं रखते। इस दौरान गाय के दूध में कमी आने और रखरखाव की लागत के बाद भी कोई रिटर्न नहीं मिलता। तब तक भी एक गाय सिर्फ 7-8 साल की होती है।

 

ठीक यह चीज भैंस पर भी लागू होती है। एक भैंस पहला जन्म देने में साढ़े तीन से चार साल लगाती है और फिर 15-16 महीने का अंतर-बछड़ा होता है। उनकी उत्पादक आयु भी 9-10 वर्ष से अधिक नहीं है। कोई भी किसान 13 साल तक इंतजार नहीं कर सकता है।


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