लईका मन सिखावत हे …
©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे…..
अपन गाड़ी ल ओहा बुलेट दिखावत हे,
अऊ बाप के गाड़ी ल खटारा बतावत हे।
कछु कहिबे त घर म झगरा मतावत हे,
मोर ल सब सुनय कह शेखी बघारत हे।।
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे…..
अपन कंघी लाये ल घर भर जतावत हे,
बाप के कमाई बेटा फुर्र ले उड़ावत हे।
घर के काम करे बर ओहर लजावत हे,
घर म खर्चा करे बर ओला जनावत हे।।
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे…..
अपन सुवारी के साग बड़ मिठावत हे,
दाई के साग रांधे म कमी गिनावत हे।
अपन सुआरी ल दिन-भर मनावत हे,
दाई-ददा के कहे ल नई पतियावत हे।।
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे…..
अपन पहिनाई-ओढ़ाई बढ़िया जतावत हे,
दाई-ददा के ल चिथरा-फटहा बतावत हे।
लोग-लईका के चिंता हर मोला सतावत हे,
अब के लईका मन कइसे दिन देखावत हे।।
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे…..
अपन लईका के छट्ठी म लाखों उड़ावत हे,
दाई – ददा ल खाये बर घर म तरसावत हे।
अपन मेहमान मन ल होटल म खवावत हे,
कछु कह त अब हमर औकात बतावत हे।।
देख तो लईका मन सिखावत हे,
अपन बड़ाई ल अपने मुँह बतावत हे……