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हनुमान जन्मोत्सव की हर तरफ खुशियां, बालोद के भूमिफोड़ हनुमान जी की 400 साल पुरानी है प्रतिमा

बालोद.

बालोद जिले के ग्राम कमरौद में 400 साल पुरानी भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा का आकार और ऊंचाई बढ़ने का दावा मंदिर समिति और भक्त करते हैं। जमीन से निकलने के कारणयह भूमिफोड़ बजरंगबली के नाम से छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध हैं। इस मंदिर की प्रसिद्धि को लेकर इसे पर्यटन स्थल बनाने की मांग ग्रामीण और मंदिर समिति कर रहे हैं।

मंदिर की खासियत यह है कि यहां जिसने भी सच्चे मन से भगवान बजरंगबली का स्मरण किया है। उसकी मनोकामना पूरी हुई है। यही वजह है कि लोगों की आस्था बढ़ रही है। मंदिर समिति के अध्यक्ष पुनीत राम देशलहरा ने बताया कि यहां पर भक्त दूर-दूर से आते हैं। पूरे साल भर यहां मेले का जैसा माहौल रहता है। भक्त यहां मनोकामना लेकर आते हैं। वह पूरी जरूर होती है। उन्होंने बताया कि पूर्वज कहते थे कि यहां पर भगवान हनुमान की प्रतिमा बढ़ रही है और इन्ही सब विषयों को देखते हुए हमने मंदिर ऊंचा बनाया है। वहीं भक्त पंकज साहू ने बताया कि मेरी आस्था इस मंदिर से काफी समय से जुड़ी हुई है। जहां आकार मुझे काफी सुकून मिलता है।

समय के साथ बढ़ता गया प्रांगण
आज के समय में इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। बजरंगबली के साथ इस स्थान पर दूसरे देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं। हाल ही में मंदिर के अंदर 17 फीट ऊंची विशाल काली मां की प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर के विकास के लिए स्थानीय लोगों ने सरकार से गुहार लगाई। लेकिन कोई फंड नहीं मिला है। जिसके बाद स्थानीय लोगों, व्यापारियों और आम जनता ने आपसी सहयोग से मंदिर का विकास किया। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त बजरंगबली की मूर्ति कृत्रिम नहीं बल्कि प्राकृतिक है। यह स्थान आस्था का केंद्र है। जहां पिछले 400 साल से लोग बारह महीने दर्शन के लिए आते हैं।

जमीन से निकले हैं हनुमान जी
गांव का एक किसान अपने खेत में हल चला रहा था। किंतु एक ही जगह बार बार हल चलाने से वह टूट जा रहा था। एक दिन उस किसान को सपने में भगवान के दर्शन हुए और उसने वहां उसी जगह खेत पर जमीन से निकले हनुमान जी को एक मंदिर के रूप में स्थापित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की। भगवान की प्राण प्रतिष्ठा से वहां उसकी मन्नतें पूरी हुई। धीरे-धीरे आसपास के ग्रामीण भी प्राण प्रतिष्ठा में लग गए और आज भी लोग दूर-दूर से अपनी मन्नतें लेकर यहां आते हैं।


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