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मैं एक पत्रकार हूं | newsforum

©नवागढ़ मारो से धर्मेंद्र गायकवाड़ की रपट

 


बेकार हूं, हां मैं पत्रकार हूं।

दुनियाभर के आरोपों का भंडार हूं

 क्योंकि मैं एक पत्रकार हूं।

व्यवस्था का अंग हूं, मगर खुद बदरंग हूं।

 जेब से तंग हूं, पर सबके संग हूं

 क्योंकि मैं एक पत्रकार हूं ।

लोकतंत्र का खम्भा हूं

 खबरों का भूखा नंगा हूं।

सबका शोषण, उत्पीड़न,

समस्या, परेशानी

लिखता, छापता हूं, छपवाता हूं।

मगर खुद के उत्पीड़न शोषण पर मौन हूं ।

 समझ नहीं आता मैं कौन हूं..?

ओह हां, याद आया मैं एक पत्रकार हूं।

स्वयं के लिए लाचार हूं

साजिशों का शिकार हूं

हां मैं पत्रकार हूं।

सबकी गाली सुनता हूं।

जनमानस के लिए लिखता हूं

वर्तमान हाल हालत पर शर्मिंदा हूं।

मगर उम्मीदों पर जिंदा हूं ।।

 सुनो …

 सृजन नहीं, हमारे हाथ में विनाश है।

हां सच ही तो कहा मैंने, विनाश उस सिस्टम का जो हरामखोरी को बढ़ावा देते हैं। विनाश उस व्यवस्था का जो पब्लिक का खून चूस कर मोटे और पुष्ट होते जा रहे हैं। विनाश ऐसे सरकारी तंत्र के उन टूच्चों भोपूओं का जो यूकेलिप्टस की पेड़ की तरह सरकार औऱ जनता की गाढ़ी कमाई को बेहयाई से सोखते जा रहे हैं। और कहते हैं हम काम कर रहे हैं।


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