माँ | newsforum
©प्रीति विश्वकर्मा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
मुझे बुखार आया, तुझे सिरहाने पाया..
तू तपती रही रात भर, मुझे क्यूं ना बताया..
आँखों में नमी, चाहे हो पैसों की कमी
तू सब छिपा लेती, गम के साये में भी मुस्कुरा देती
मेरी प्रतिपल की खबर रखती, विश्वास भी बहुत करती
मुश्किल राह हो, अंधेरों से ना डरती
लड़ती आग से, रोटी सेंकते ऊंगली तेरी जलती
सब खाना खा लेते, हाथ बाद में दिखाती
इतनी फ़िक्र करती, कभी उदास होने कहां देती
माँ है जनाब! उदास देख, चैन से ना सोती
गम भी दब सा जाता है,
तेरा दुआओ वाला हाथ जैसे सर पे आता है..
दिल से शुक्रिया खुदा ! जो इनकी गोद में डाला
इस नाचीज को ऐसे फ़रिश्ते ने पाला..