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Land of Buddha : मेजर जनरल सर एलेक्सज़ेंडर कनिंघम जन्म इंग्लैंड में हुआ लेकिन दिल बुद्ध भूमि के लिए धड़का; धरती चीरकर बुद्ध को बाहर लाने में उनके महान योगदान को पढ़ें…

Land of Buddha : Major General Sir Alexander Cunningham :

Dr. M L Parihar, Jaipur
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एमएल परिहार

परिचय- पाली,जयपुर


 

Land of Buddha : सर एलेक्सज़ेंडर कनिंघम का जन्म 23 जनवरी 1814 को लंदन में हुआ था। 19 साल की उम्र में वे बंगाल इंजीनियर्स में शामिल हुए और 28 साल तक ब्रिटिश सेना में कार्यरत मेजर जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 1834 में भारत आने के बाद उनकी मुलाकात जेम्स प्रिंसेप से हुई जो करीबी दोस्तों में बदल गए थे। प्रिंसेप उस समय कई शिलालेखों पर काम कर रहा था और पटकथा की खोज कर रहा था। कनिंघम को भी भारतीय इतिहास का शौक है। हालांकि ब्रिटिश सेना में उनका प्रदर्शन पढ़ने योग्य था, लेकिन खुदाई में कई खोजों के कारण इनका नाम इतिहास में उकेरा गया।

 

21 साल की उम्र में वाराणसी में सेना में काम करते हुए उनका ध्यान सारनाथ की मिट्टी में दबे कुछ अवशेषों पर गया। उन्होंने प्राचीन महल बनाने के लिए खुदाई के लिए वरिष्ठ नागरिकों की अनुमति और धन मांगी। अनुमति तो मिली लेकिन धन नहीं। कनिंघम ने इस खुदाई के लिए अपना वेतन खुद दिया। इसमें पाया गया शिलालेख प्रिंसेप द्वारा लिखा गया था और यह एक खतरनाक स्तूप है। बुद्ध ने कहा कि उल्लेख है कि उन्होंने पहला प्रवचन यहीं दिया था। 145 फुट लंबा स्तूप देख झुक गया कनिंघम बाद में उन्होंने सांची में स्तूप की खुदाई की, चारों और खुदाई से कई मूर्तियां।(Land of Buddha)

 

बी. बुद्ध और सरीपुत्त और मोग्लान की हड्डियों का पता चला। यहाँ सभी स्तूप को पुनर्जीवित किया। कनिंघम ने एक चीनी बौद्ध भिखारी, हुयान त्सांग की यात्रा विवरण के माध्यम से कई बौद्ध स्थानों को खोजने की कोशिश की। उन्होंने कुशीनारा में बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल और 1500 वर्ष पुराने बी की खोज की थी। महापरिनिर्वाण मुद्रा में बुद्ध की मूर्ति खुदाई से मिली।(Land of Buddha)

Land of Buddha

1846 में कनिंघम ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग को भारत में पुरातात्विक सर्वेक्षण शुरू करने का प्रस्ताव भेजा था। उनके प्रयासों को रंग लाया और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण 1861 में स्थापित किया गया था और सर एलेक्सज़ैंडर कनिंघम को इसके पहले महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। उसके बाद, उन्होंने भारत में खुदाई को बढ़ावा दिया। उन्होंने 1881 में बोधगये में खुदाई शुरू की थी। कनिंघम ने वहां सम्राट अशोक द्वारा निर्मित वज्रासन और बुद्ध की हड्डियों की खोज की थी। कनिंघम बहुत खुश था। भले ही नालंदा की खुदाई फ्रांसिस बुचनन ने की थी, लेकिन कनिंघम ने पाया कि वास्तुकला नालंदा विश्वविद्यालय थी। उन्होंने तक्षशिला को सबसे पुराना बौद्ध विश्वविद्यालय की खोज की और खुदाई शुरू की जो बीस वर्षों तक चली। कनिंघम ने अयोध्या में खुदाई की और स्वीकार किया कि यह एक पूर्व बौद्ध विहार था। बाद में खुदाई में मिला कसौती स्तंभ और उस पर मूर्ति की पुष्टि करता है। कनिंघम ने कई प्राचीन बौद्ध स्थलों की खोज की और उन्हें दुनिया में लाया। उन्होंने पूरे भारत में खुदाई की और कई प्राचीन वास्तुकारों की खोज की।(Land of Buddha)

 

एलेक्सज़ैंडर कनिंघम 1885 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सेवानिवृत्त हुए, हालांकि, उनके द्वारा बनाए गए आदर्श अभी भी आधुनिक पुरातत्वविदों के लिए एक मार्गदर्शक हैं। उन्होंने प्राचीन भारत में कई शहरों और वहां के पुरातत्व की खोज की। हर वास्तुकला के सुंदर रेखाचित्र जो उन्होंने पूरी तरह से ठीक विवरण के साथ खुदाई की थी। आज भी इनके स्केच का विश्व भर में अध्ययन किया जाता है। सम्राट अशोक के सम्पूर्ण शिलालेख, स्तंभ लेख कानिंघम ने हटा दिए थे। शिलालेख कैसे लिखते हैं इसके आदर्श उदाहरण हैं। कनिंघम ने कई किताबें लिखीं, लेकिन उन्होंने जिस पुस्तक की श्रृंखला शुरू की वह कॉर्पस शिलालेख इंडिकेरम भारतीय इतिहास और पुरातत्व का मानक माना जाता है। आज सर एलेक्सज़ैंडर कनिंघम की 210 वीं जयंती है। इनको तहे दिल से त्रिवार सलाम.(Land of Buddha)

 

आलेख : अतुल भोसेकर

 

हे कनिंघम ! बौद्ध समाज आपके कृत्यों के प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगा। आपके उत्खननों ने न केवल तथागत गौतम बुद्ध को ऐतिहासिक सिद्ध किया, अपितु उनके मानवीय अस्तित्व और उनसे संबंधित समस्त स्थलों का पता समस्त जगत् को हुआ। आपने विश्वविख्यात चीनी बौद्ध भिक्खुओं ह्वेनत्सांग और फाह्यान के यात्रा वृत्तान्तों को आधार बनाकर अविभाजित भारतवर्ष के तक्खसिला (तक्षशिला), सागल (स्यालकोट), अहिछत्त (अहिछत्र), बैराट (वैराट), संकिसा, सावत्थि (श्रावस्ती), कौसाम्बी, वैसाली (वैशाली), नालन्दा आदि अनेक बौद्ध स्थलों की उत्खनन के द्वारा ऐतिहासिक पुष्टि की। आपने 1871 में भारत का प्राचीन भूगोल नामक पुस्तक की भी रचना की।(Land of Buddha)

Buddha Dhara of Sarnath

तथागत बुद्ध के मार्ग पर चलकर तथा लोककल्याणकारी राज्य व्यवस्था स्थापित करके अजातशत्रु, कालाशोक, महापद्मनन्द, अशोक, कनिष्क, मिनाण्डर, कुमारगुप्त, गौतमीपुत्र शातकर्णी, हर्षवर्धन, कुबले खान (मंगोलिया), अल्तान खान (मंगोलिया), मिंग (चीन), याओ सिंग (चीन), तांग डेजंग (चीन) तथा अन्य देशी-विदेशी शासक न केवल प्रसिद्ध हुए, अपितु इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। बुद्ध वचनों पर विभिन्न ग्रंथ लिखने वाले नागार्जुन, आर्यदेव, धर्मकीर्ति, दिड़्नाग, रत्नकीर्ति, पद्मसंभव, अतीश दीपंकर आदि तथा बुद्ध वचनों और शास्त्रों का अनुवाद करने वाले दाओ एचोन, कुमारजीव आदि चीनी; तारानाथ तथा अन्य तिब्बती अनुवादक; दुनिया की प्रत्येक भाषा में बुद्ध वचनों को अनूदित करने वाले लोग भी प्रसिद्ध हुए।(Land of Buddha)

 

हे कनिंघन ! आपके द्वारा तथागत की ऐतिहासिक तथता के प्रमाणों का खोजा जाना, विश्व इतिहास में आपको स्वर्णाक्षरों से अंकित करता है। आपके जन्मदिन (23 जनवरी 1814) के अवसर पर हम आपका पुण्यानुमोदन करते हैं।

  – डॉ.विकास सिंह

 

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के जनक

 

भारत में 19 वी शताब्दी में भारतीय कला और पुरातत्व का विकास हुआ, जिसका पूरा श्रेय सर अलेक्ज़ैंडर कनिंघम को जाता है. कनिंघम ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर थे जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हुए. उन्होंने ही सबसे पहले सारनाथ की खुदाई करवाई थी.(Land of Buddha)

Land of Buddha

कनिंघम जी का जन्म इंग्लैंड में १८१४ ई में हुआ था. अपने सेवाकाल के प्रारंभ से ही भारतीय इतिहास और पुरातत्व में कनिंघम को बहुत लगाव था. इसलिए 21 साल की उम्र में अपने पैसों से सारनाथ में खुदाई शुरू करवाई थी . यह भी एक शोध का विषय है कि उस समय कितना खर्च हुआ था. इन्होंने भारतीय विद्या के विख्यात शोधक जेम्स प्रिंसेप की, प्राचीन सिक्कों के लेखों और खरोष्ठी लिपि के पढ़ने में पर्याप्त सहायता की थी. मेजर किट्टो को भी, जो प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज का काम सरकार की ओर से कर रहे थे, अपना मूल्यवान् सहयोग दिया. कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षक बनाया गया और कुछ ही वर्ष पश्चात् उनकी नियुक्ति (उत्तर भारत के) पुरातत्व-सर्वेक्षण-विभाग के प्रथम महानिदेशक के रूप में हो गई. इस पद पर वे (1871से) 1885 तक रहे.(Land of Buddha)

Land of Buddha

कनिंघम ने भारत के प्राचीन विस्मृत इतिहास के विषय में काफी जानकारी संसार के सामने रखी. प्राचीन स्थानों की खोज और अभिलेखों एवं सिक्कों के संग्रहण द्वारा उन्होंने भारतीय अतीत के इतिहास की शोध के लिए मूल्यवान् सामग्री जुटाई और विद्वानों के लए इस दिशा में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया. कनिंघम के इस महत्वपूर्ण और श्रमसाध्य कार्य का विवरण पुरातत्व विषयक रिपोर्टो के रूप में, २३ भागो में, छपा जिसकी उपदेयता आज प्राय: एक शताब्दी पश्चात् भी पूर्ववत् ही है.(Land of Buddha)

 

कनिंघम ने प्राचीन भारत में आनेवाले यूनानी और चीनी पर्यटकों के भारत विषयक वर्णनों का अनुवाद तथा संपादन भी बड़ी विद्वत्ता तथा कुशलता से किया है. चीनी यात्री ह्वेनत्सांग (७वीं सदी ई.) के पर्यटनवृत्त का सपांदन, विशेषकर प्राचीन स्थानों का अभिज्ञान, अभी तक बहुत प्रामाणिक माना जाता है.

 

1871 में उन्होंने ‘भारत का प्राचीन भूगोल’ (एंशेंट ज्योग्रैफ़ी ऑव इंडिया) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसका महत्व आज तक कम नहीं हुआ है. इस शोधग्रंथ में उन्होंने प्राचीन स्थानों का जो अभिज्ञान किया था वह अधिकांश में ठीक साबित हुआ, यद्यपि उनके समकालीन तथा अनुवर्ती कई विद्वानों ने उसके विषय में अनेक शंकाएँ उठाई थीं. उदाहरणार्थ, कौशांबी के अभिज्ञान के बारे में कनिंघम का मत था कि यह नगरी उसी स्थान पर बसी थी जहाँ वर्तमान कौसम (जिला इलाहाबाद) है, यही मत आज पुरातत्व की खोजों के प्रकाश में सर्वमान्य हो चुका है. किंतु इस विषय में वर्षो तक विद्वानों का कनिंघम के साथ मतभेद चलता रहा था और अंत में वर्तमान काल में जब कनिंघम का मत ही ठीक निकला तब उनकी अनोखी सूझ-बूझ की सभी विद्वानों को प्रशंसा करनी पड़ी है.(Land of Buddha)

 

कनिंघम ने भारतीय मंदिरों, ऐतिहासिक भूगोल, मुद्रा शास्त्र में तमाम कार्य किए हैं. उन्होंने मथुरा, बोधगया, काशी समेत कई स्थानों पर खुदाई का कार्य करवाया था. इतिहासकार ओपी केजरीवाल ने बताया कि कनिंघम के ही प्रयासों से भारत में तमाम प्राचीन अवशेष प्राप्त हुए हैं.

Buddha Dhara of Sarnath

सारनाथ की खोज भी उन्हीं की देन है. सारनाथ में खुदाई लगभग सौ वर्षों (1836 से) 1933 तक चली. 1904 में ब्रिटिश सर्वेयर एसएफ ऑर्टल के समय जब खुदाई चल रही थी, तभी अशोक स्तंभ मिला.

 

वैदिक सभ्यता ही सबसे पुरानी सभ्यता है इस मिथक को तोड़ने में कनिंघम जैसे पुरातत्व वेत्ताओं का अहम योगदान है. आज सर अलेक्जेंडर कनिंघम की जयंती हैं, इस महान अंग्रेज अधिकारी ने प्राचीन बौद्ध इतिहास को जीवित किया है, उनके इस महान कार्य के लिए शत शत नमन !

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अलेक्जेंडर कनिंघम जिन्होंने बौद्ध/ चीनी यात्रियों का यात्रा – वृत्तांत हाथ में लिए हुए, जंगल – जंगल, पहाड़ – पहाड़, गली -गली की खाक छानकर भारत के जमींदोज बौद्ध – स्थलों को जमीन पर उतारा, भारतीय पुरातत्व के जनक उन एलेक्जेंडर कनिंघम का आज 23 जनवरी को जन्मदिन है, बहुत बहुत शुभकामनायें–(Land of Buddha)

 

भारत में 19वीं शताब्दी में भारतीय कला और पुरातत्व का विकास हुआ, जिसका पूरा श्रेय अलेक्जेंडर कनिंघम को जाता है। अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पिता के रूप में भी जाना जाता है। कनिंघम बंगाल इंजीनियर समूह के साथ एक ब्रिटिश सेना के इंजीनियर थे। बाद में उन्होंने भारत के इतिहास और पुरातत्व में रुचि ली।(Land of Buddha)

Buddha Dhara of Sarnath

अलेक्जेंडर कनिंघम का जन्म आज ही के दिन यानी 23 जनवरी 1814 को यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। अलेक्जेंडर कनिंघम एक अंग्रेजी पुरातत्वविद्, सेना के इंजीनियर, स्कॉटिश शास्त्रीय विद्वान और आलोचक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकें और मोनोग्राफ भी लिखा। इसके अलावा कलाकृतियों का व्यापक संग्रह भी किया। कनिंघम को 20 मई 1870 को सीएसआई और 1878 में CIE से सम्मानित किया गया था।

 

अलेक्जेंडर कनिंघम का प्रारंभिक जीवन-

 

बड़े भाई जोसेफ के साथ अलेक्जेंडर कनिंघम ने क्राइस्ट हॉस्पिटल, लंदन में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। फिर 19 साल की उम्र में वह बंगाल इंजीनियर्स में शामिल हो गए और अपने जीवन के अगले 28 साल भारतीय उपमहाद्वीप की ब्रिटिश सरकार की सेवा में बिताए। एक विशिष्ट कैरियर के बाद उन्होंने 1861 में प्रमुख जनरल के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

Buddha's Dhamma

21 साल की उम्र में अपने पैसों से सारनाथ में करवाई थी खुदाई

 

कहा जाता है कि 21 साल की उम्र में कनिंघम ने सारनाथ की खुदाई शुरू करवाई थी। पुरातत्व में उनको बहुत लगाव था इसीलिए उन्होंने अपने खुद के खर्च से खुदाई करवाई थी। इतना ही नहीं कनिंघम ने भारतीय मंदिरों, ऐतिहासिक भूगोल, मुद्रा शास्त्र में तमाम कार्य किए हैं। वह 1871 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डाइरेक्टर जनरल बने। उन्होंने मथुरा, बोधगया, काशी समेत कई स्थानों पर खुदाई का कार्य करवाया था।

 

प्राचीन काल में गहन रुचि-

 

कनिंघम को शुरुआत से ही प्राचीन काल में गहन रुचि थी। 1842 में उन्होंने 1851 में संकिसा और सांची में खुदाई की।1865 में उनके विभाग को समाप्त कर दिए जाने के बाद, कनिंघम इंग्लैंड लौट आए और उन्होंने भारत के अपने प्राचीन भूगोल (1871) का पहला भाग लिखा, जिसमें बौद्ध काल शामिल था। 1870 में, लॉर्ड मेयो ने कनिंघम के साथ 1 जनवरी 1871 से महानिदेशक के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को फिर से स्थापित किया। फिर वे भारत लौट आए और अपने प्रबंधन के तहत 24 रिपोर्टें, 13 को लेखक और बाकी लोगों के रूप में तैयार किया।

 

उनके महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं–

 

  •  –एलेक्जेंडर कनिंघम ने नवंबर 1861 में आर्कियोलॉजिकल सर्व आफ इंडिया स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था…..
  • — पहली बार एलेक्जेंडर कनिंघम ने खुदाई कर बताया था कि ये सारनाथ स्तूप है जहां बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था।
  • — वो एलेक्जेंडर कनिंघम थे जिन्होंने खुदाई कर नालंदा महाविहार को बाहर निकालकर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
  • — एलेक्जेंडर कनिंघम ने नवंबर 1873 में भरहुत स्तूप की खोज की थी….
  • — एलेक्जेंडर कनिंघम ने नवंबर 1874 में भरहुत स्तूप के अवशेषों को क्रमबद्ध किया था….
  • —- एलेक्जेंडर कनिंघम ने नवंबर 1875 में सासाराम स्थित अशोक के शिलालेख देखने के लिए यात्रा की थी….

 

                30 सितंबर 1885 को पुरातत्व सर्वेक्षण से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने शोध और लेखन को पूरा करने के लिए वह लंदन वापस लौट आए। 1887 में, उन्हें नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर बनाया गया था। 28 नवंबर 1893 को लंदन में कनिंघम ने अंतिम सांस ली।

     —- आलोक सिंह शाक्य

 

 

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