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सोशलिस्ट साहित्यकार, बेनीपुरी !! एक श्रद्धांजलि | ऑनलाइन बुलेटिन

के. विक्रम राव

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

-लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

 

यह वृत्तांत है एक सोशलिस्ट सूरमां का जो था तो निखलिस गांधीवादी, पर गुरिल्ला युद्ध में उसे महारत थी। संदर्भ है रामवृक्ष बेनीपुरी का। आज उनकी पछपनवीं (6 सितम्बर 2022) पुण्यतिथि है। यह भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के सिलसिले में अधिक समीचीन हो जाता है। बेनीपुरी की विलक्षण शख्सियत के विभिन्न आयामों का यहां पर उल्लेख है। एक सृजनशील साहित्यकार, विप्लवी स्वाधीनता- सेनानी, राजनीतिक क्रांतिदृष्टा, लडैय्या पत्रकार, कालजयी नाट्यकार, जुझारू विधायक, मगर सर्वाधिक संवेदनशील इंसान, जिनके दिल में भारत के समतामूलक जनान्दोलन की वेदना झलकती थी। टीस सुनायी देती थी। करीब छह दशक बीते। उनके पटना-स्थित बोरिंग रोड आवास पर भेंट करने मैं गया था। तब यूपी के कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे बाबू संपूर्णांनन्द, बनारसवाले, ने छात्र आन्दोलन का नृशंस दमन करने की कसम खा ली थी। निर्ममता और र्बर्बरता के लिये ख्यात यूपी पुलिस के वारन्ट से लखनऊ में बचते में पटना मैं छिप गया था। तब विश्वविद्यालय की समाजवादी युवक सभा का सचिव था।

 

पटना में बेनीपुरी से भेंट करने उनके बोरिंग रोड डेरे पर मैं गया। वे व्यथित थे। प्रकरण यही पूर्व सोशालिस्ट, सत्तासीन संपूर्णांनन्द का है। वे राजमद के व्यामोह में निमज्जित हो गये थे। मगर बेनीपुरी जी आक्रोशित थे राष्ट्र के इन सोशलिस्ट नेतागण के कामधाम से। उनके दर्दभरे अलफाज उद्वेलित करते रहे। तभी वर्तमान सियासी परिदृश्य पर उनका वाक्य था, बड़ा यादगार, मर्म छू जाने वाला है: ‘‘एक हमारे कमांडर थे, जयप्रकाश नारायण। उन्होंने भूदान में जीवन ही दान कर दिया। दूसरा योद्धा था (रामनोहर लोहिया) उसने अपने कुटिया अलग बना ली।‘‘ फिर कुछ रूके और बोले, ‘‘नेहरू कितना तकदीरवाला है। उसके विरोध बिखरते जा रहे हैं। कोई सबल प्रतिरोध नहीं। समाजवादी इन तीनों बलैय्या लेते थे कभी।‘‘

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बिहार सोशलिस्ट संघर्ष के पुरोधा रामवृक्षजी सच में समतावादी समाज के लिये युद्धरत रहे। पहला काम इस भूमिहार विप्र ने किया कि अपने नाम से ‘‘शर्मा‘‘ हटा दिया। गांव बेनीपुर को जोड़ दिया। ‘‘जनेऊ तोड़ो‘‘ अभियान चलाया। अपने देशप्रेमवाली कृतियों पर उन्हें जेल जाना पड़ा। हजारीबाग जेल में दीवार फांद कर भागने में जयप्रकाश नारायण की मदद में भी रामवृक्षजी की अहम किरदारी थी। हजारीबाग जेल ब्रिटिश राज में यातना के लिये मशहूर था। इस परिवेश में रामवृक्ष जी के संबंधी राजीव रंजन दास का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम लिख पत्र काफी प्रकाश डाला है।

 

राजीव रंजन दास ने मोदी को लिखा: ‘‘विषय: ‘‘अगस्त क्रांति के वीर योद्धा: 23 मई 1943, हनुमान नगर (नेपाल) जेल-ब्रेक और आजादी की 75वीं वर्षगांठ।‘‘ मान्यवर, जब से आप प्रधानमंत्री बने, भारत के आजादी के चंद ऐसे किस्सों पर बराबर आपने अपनी नजर घुमाई जिसे कांग्रेसी राज ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। मुझे याद है की अगस्त क्रांति के 75वीं वर्षगांठ / हीरक जयंती पर, आपने संसद के दोनों सदनों का विशेष संयुक्त अधिवेशन सम्बोधित कर, अगस्त क्रांति के शहीदों पर भारतीय संसद के माध्यम से श्रद्धांजलि और कृतज्ञता अर्पित की और श्री रामवृक्ष बेनीपुरी जी की पुस्तक ‘‘जंजीरें और दीवारें‘‘ (जिसमे 942 की क्रांति की आंखों देखी झलके प्रस्तुत की गई है) की पंक्तियों को दोहरा का उस वक्त की मनोदशा और मिजाज को देश से अवगत करवाया था। वह शब्द रचना भी आंखों देखी ही थी, क्योंकि खुद श्री रामवृक्ष बेनीपुरी 1942 के क्रांति के महानायको में से एक थे।‘‘

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बेनीपुर के संघर्ष कालखण्ड की यह उपरोक्त बात है करीब 1948-49 की। तब पटना से दैनिक ‘‘सर्चलाइट‘‘ और हिन्दी प्रदीप (आज हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दुस्तान) प्रकाशित होता था। मेरे पिता स्वाधीनता सेनानी स्व. के. रामा राव ‘‘सर्चलाईट‘‘ के संपादक थे। पड़ोसी नेपाल में वंशानुगत राणा कुटुम्ब ने महाराज त्रिभुवन वीर विक्रम शाह को कठपुतली शासक बना कर महल में कैद कर लिया था। काठमाण्डो में ब्रिटिश राजदूत ने कोईराला बंधुओं को तंग करना शुरू किया था। मातृका प्रसाद, विश्वेश्वर प्रसाद और गिरिजा प्रसाद भारतीय सोशलिस्टों के साथी थे। उनका रामवृक्षजी से गहरा संबंध रहा। गिरिजा प्रसाद कोईराला को तो संपादक के. रामा राव ने ‘‘नेशनल हेरल्ड‘‘ का काठमाण्डो में 1945 संवाददाता नियुक्त किया था।

 

इन कोइराला बंधुओं को नेपाल के राणाराज के खिलाफ जनसंघर्ष में गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल तथा केन्द्रीय मंत्री रफी अहमद किदवई का पूरा समर्थन था। इन सोशलिस्टों को बिहार सीमा पर जमे नेपाली लड़ाकुओं को संबल मिला था। रामवृक्ष जी इन सारी कार्रवाहियों के हरावल दस्ते में थें मगर तभी नेपाल के राजाओं ने अपने व्यवसायिक यार घनश्यामदास बिड़ला पर दबाव डाल कर दैनिक ‘‘सर्चलाईट‘‘ को नेपाल जनसंघर्ष से हटवा दिया। संपादक के. रामा राव को बर्खास्त कर दिया गया। उस कालखण्ड में गर्दनीबाग के पटना हाईस्कूल में छात्र मैं था। समाचारपत्र पढ़ लेता था। रामवृक्ष बेनीपुरी जी के संघर्ष के दौर के समय ही पड़ोसी चीन में माओ जेडोंग की कम्युनिष्ट लाल सेना भी अमेरिकी पिट्ठु च्यांग काई शेक को बचा न सकी। ‘‘सर्चलाईट‘‘ में तब नेपाल और माओ के चीन की खबरें ही खूब छपती थीं।

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राजनेता के साथ रामवृक्ष बेनीपुरी जी की हिन्दी से सेवा भी अपरिमित और असीम थी। रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने बहुत सारी रचनाएं की हैं जिनमें कहानी, उपन्यास, नाटक, रेखाचित्र, यात्रा विवरण, संस्मरण, निबंध आदि लिखे हैं जो कि बहुत प्रचलित हुए हैं। बिहार में हिंदी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक के रूप में भी रामवृक्ष बेनीपुरी को याद करते हैं। रामवृक्ष जी जब 15 साल के थे तभी से उन्होंने पत्रिकाओं में लेख लिखते थे तथा 1930 में जेल में रहते हुए वे पतितों के देश में नाम का एक प्रसिद्ध उपन्यास का रचना किया। कहा जाता है कि बेनीपुरी जी जब भी किसी आंदोलन के बाद जेल में जाते थे और जेल से रिहा होते थे उनके हाथ में दो चार ग्रंथों की पांडुलिपियां जरूर रहती थी क्योंकि जेल में रहकर भी वह लोगों के दिलों में आग भड़काने वाली रचनाएं लिखते रहते थे।

 

रामवृक्ष की रचानाओं में मुझ पत्रकार को उनकी ‘‘गेंहू और गुलाब‘‘ बहुत पंसद है इसमें रूहानी तथा भौतिक विषयों पर सामयिक टिप्पणी है। उस काल में सोशलिस्ट आंदोलन के लोग अग्रिम पंक्ति के साहित्यकार भी होते थे। आज के समाजवादियों के लिये मिसाल हैं रामवृक्ष। राजनेता भी, साहित्यकार थे और जननायक थे। उन्हें हमारी श्रद्धांजलि।

 

 

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