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हम त्यागें ऐसी कुप्रथा | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद

परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान


 

विकासशील अपने भारत में, हम त्यागें ऐसी कुप्रथा।

बालविवाह, मृत्युभोज, दहेजप्रथा, यह पर्दाप्रथा।।

विकासशील अपने भारत में—————–।।

 

जीने दो इनको बचपन, उम्र है शिक्षा पाने की इनकी।

खिलने दो कलियों को, करो नहीं बर्बाद जिंदगी इनकी।।

मत करो इन फूलों का सौदा, अपने मतलब के लिए।

करके इनका बालविवाह, करो नहीं नष्ट इनकी सत्ता।।

विकासशील अपने भारत में——————–।।

 

अपने जिगर के टुकड़े को, सौंपना यूँ किसी घर को।

कर देता है हृदय विचलित, विदाई बेटी की सब को।।

यह कन्यादान ही महादान है, फिर दहेज किस बात का।

कर देती है कई घर बर्बाद, समाज मे यह दहेज प्रथा।।

विकासशील अपने भारत में——————–।।

 

एक ख्वाब संजोकर मां- बाप, लुटा देते हैं सब सन्तान पर।

मगर नहीं आने देते दुःख, मां-बाप अपनी संतान पर ।।

बेकदर कर देती हैं मां-बाप को, बुढ़ापे में औलाद क्यों।

मां-बाप की मृत्यु पर मृत्युभोज, एक जश्न है ऐसी प्रथा।।

विकासशील अपने भारत में——————–।।

अबला नहीं, सबला है नारी, हर मंजिल इसने पाई है।

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति का ताज नारी पाई है।।

इंद्रा गांधी, झांसी रानी, पदमनी, पन्नाधाय, एक भगवती है।

मत रखो पर्दे में नारी को, किस काम की यह पर्दा प्रथा।।

विकासशील अपने भारत में——————–।।

 


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