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मेरे गुरु महान | Newsforum

©नीरज सिंह कर्दम, बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश


 

 

तुम ही हो

मेरे गुरु महान

अंगुली पकड़कर

चलना सिखाया

कांधे पर बिठाकर

तुमने घुमाया,

दिया पहले तुमने

मुझे ज्ञान ।

 

सच क्या है

झूठ क्या है

सही गलत सब

तुमने समझाया

गिरते हुए को

चलना सिखाया

 

तुम ही हो

मेरे गुरु महान

हाथों में तुमने

कलम थमाया

सम्मान से जीने का

अधिकार दिया ।

शिक्षा की ज्योति जलाकर

अंधियारे को

दूर किया ।

 

गुरु तुम्हारे

उपकारों का कैसे

चुकाए मोल

लाख कीमती धन भक

गुरु मेरे अनमोल,

गुमनामी के अंधेरों से

तुमने पहचान दिलाई,

 

जीवन पथ पर

सही गलत की राह

दिखाते हो,

हर कठिनाई में तुम

साथ निभाते हो,

गुरु से बड़ा

कोई भगवान नहीं।

माता पिता

हमारे महान महापुरुषों

व गुरुजनों को

मेरा

नतमस्तक प्रणाम ।


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