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जंग और शांति | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई, आईटी सॉफ्टवेयर इंजीनियर.


 

हर जंग का एक ही अंजाम।

शांति पे ही जंग तमाम।

कलयुग कम और अंत युग ज़्यादा दिखने लगा,

मानव ने बेचा या फिर ख़ुद ही बिकने लगा।

 

 

दिन प्रतिदिन इसकी लालसा बढ़ती गयी,

ज़िन्दगी में जंग नहीं, जंग में ज़िन्दगी चलती रही।

प्रतिष्ठा, सम्मान और सर्व शक्तिमान बनना है,

जिसकी लाठी उसी की भैंस पे चलना है।

 

 

स्याह रंग ने आसमाँ को घेर लिया,

ज़मी पे देखो, खून का दरिया बहने लगा।

परिंदे भी इंसानों को शर्मसार होगा,

मानवता ने स्वंय का आस्तित्व बेच दिया होगा।

 

 

शान्ती के काग़ज़ पे, मुहर लगाने वाले,

भूल जाते हैं, जंग को जीत बताने वाले।

मानवता का सर्वनाश एक दिन हो जाएगा,

जंग और न्यूक्लियर की आग में झोंका जाएगा।

 

 

हर दिन एक जंग लड़कर, देश से भी लड़ने लगे,

हसीन ख़्वाब दिखाने वाले, काँटों की सेज धरने लगे।

चीख़ रही है ज़मीन, रो रहा है आसमाँ।

शांति करो स्थापित, वरना मिट जाएगा जहाँ।

 


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