अब तो समझो उनकी नीतियां…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
चीरकर अंधेरे को कब वो नया सूरज निकल आयेगा,
फिर ये उजड़ा हुआ चमन कब गुलशन बन जायेगा।
चंद साल गुज़रे आजादी के और वो सबकुछ भूल गए,
आज कहां है वो इतिहास के पन्नें जो हमें आजादी छोड़ गए।
अपने मतलब के लिए ही वो लोग तिरंगा हमें दिखा रहे है,
सियासत छूट ना जाएं हाथों से,इसलिए धर्म हमें वो सिखा रहे है।
कभी उनका भी खानदान देखो,वहां कोई भी धर्म नहीं है,
कभी उनके रिश्ते भी देखो,वहां कोई भी संस्कृति नहीं है।
मशीनें उनकी,वोट तुम्हारे और बटन उनके ही हाथों में है,
तुम्हारे लिए ये चुनाव है मगर,उनके लिए ये भी एक खेल है।
राजनीति में यहां कोई नीति और कोई जनहित नहीं है,
सियासत उनका ख्वाब,मुंह में राम और बगल में छुरी है।
संविधान के पन्ने जलानेवाले ही,देशभक्ति और अखंडता की बात करते है,
अब तो समझो उनकी नीतियां,यही हैवान देश को उजाड़ना चाहते है।
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