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ओवैसी की पार्टी बिहार की 11 सीटों पर सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी, लालू-तेजस्वी की टेंशन बढ़ी

नई दिल्ली
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार की 11 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इससे लालू एवं तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी समेत पूरे महागठबंधन की चिंता बढ़ने वाली है। ओवैसी की पार्टी बिहार की किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया समेत अन्य सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। राज्य के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में ओवैसी का पिछले कुछ सालों में खासा प्रभाव देखने को मिला है। किशनगंज सीट से एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक अख्तरुल ईमाम प्रत्याशी होंगे। उन्होंने कहा कि AIMIM ने INDIA गठबंधन में शामिल होने की कोशिश की। मगर बात नहीं बनती तो निराश होकर अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

ओवैसी की पार्टी बिहार की जिन 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी उसमें किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा, बक्सर, गया, मुजफ्फपुर, उजियारपुर, काराकाट और भागलपुर शामिल हैं। किशनगंज से अख्तरुल ईमान चुनाव लड़ेंगे तो कटिहार से आदिल हसन को प्रत्याशी बनाया गया है। अन्य सीटों पर भी पार्टी ने प्रत्याशी लगभग तय कर लिए हैं, ओवैसी की मंजूरी मिलते ही उनके नाम भी घोषित कर दिए जाएंगे।

एआईएमआईएम विधायक अख्तरुल ईमान ने बुधवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि उनकी पार्टी ने बिहार और देश में सेकुलर वोटों का बिखराव न होने की बहुत कोशिश की। उनका इरादा गठबंधन में शामिल होने का था। मगर ऐसा नहीं हो पाया। उन्होंने आरजेडी का नाम लिए बिना आरोप लगाए कि उनके पीठ पर खंजर घोंपा गया। उनकी पार्टी के विधायक तोड़ लिए गए। उन्होंने कहा कि सभी पार्टियां चाहती हैं कि दलित और अल्पसंख्यकों का वोट मिले, लेकिन इन्हें प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती हैं। यह दुख की बात है।

महागठबंधन के वोटों में लगेगी सेंध?
AIMIM के बिहार में चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद महागठबंधन के नेताओं की चिंता बढ़ गई है। मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी की पार्टी का खासा प्रभाव रहा है, पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM ने इस क्षेत्र की 5 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था। हालांकि, बाद में उनके चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा विभिन्न उपचुनावों में भी ओवैसी ने आरजेडी के मुस्लिम वोटरों में सेंधमारी की। बिहार में मुस्लिम समुदाय लालू यादव की आरजेडी का कोर वोटर माना जाता है। मगर पिछले कुछ सालों में ओवैसी ने अल्पसंख्यक वोटरों को अपने पाले में करने की भरसक कोशिश की। इसका फायदा उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।

 


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