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महिलाओं का पिता की संपत्ति पर अधिकार | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई


 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा के अनुसार महिलाओं को पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार है, परन्तु आज भी समाज की ये विडंबना है कि वो किसी भी हाल में महिलाओं को इनसे दूर रखते हैं।

 

आज की महिलाएं, पुरुष के समक्ष खड़ीं होकर बराबरी से कंधे-से-कंधा मिलाकर चल रहीं हैं। हर क्षेत्र में होने के बावजूद माता-पिता को हर प्रकार की सेवा एवं सुविधा देतीं हैं। आज तो पुत्र के न होने या अंतिम संस्कार में शामिल न होने पर भी मृत्यु शैय्या को कांधे पर उठाकर श्मसान पहुंचाने से हर क्रिया कर्म करने का कार्य करती है, मुखाग्नि भी देती है।

 

पुरुष प्रधान देश होने की वजह से आज भी महिलाओं को अपने अधिकार से वंचित रहना पड़ता है, चाहे वो संपत्ति का अधिकार ही क्यों न हो। पराए घर जाना है; से लेकर पराये घर से आई है के सफ़र में वो किसी घर की नहीं हो पाती। सिर्फ़ देती है तो अपना योगदान और जीवनदान।

 

विवाह करने में ख़र्च आता है ये भी तो मांग पुरूष की होती है और वंचित हो जाती है अपने संपत्ति के अधिकार से। ये अधिकार जैसे पुरुषों में बंट जाता है बिना किसी दबाव के, ऐसे ही ये अधिकार महिलाओं को भी मिलना चाहिए।


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