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Social Justice and Caste Discourse : कवि कृष्णचंद्र रोहणा की रचनाओं में सामाजिक न्याय एवं जाति विमर्श । ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©डॉ. दीपक मेवाती

परिचय- मेवात, हरियाणा.


 

Social Justice and Caste Discourse : : Social justice and caste discourse in the works of poet Krishnachandra Rohana. सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मानव के विकास में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय की अवधारणा का अर्थ भारतीय समाज में पीड़ित, शोषित और वंचितों को सामाजिक बराबरी दिए जाने के रूप में लिया जाता है। भारतीय समाज में प्रचलित सभी धर्मों के मूल में सामाजिक न्याय दृष्टिगोचर होता है, किन्तु समय के साथ जिस प्रकार धर्म व्यवहार में आये हैं, उसमें सामाजिक न्याय का अर्थ परिवर्तित हो गया है। सामाजिक न्याय के विचार विभिन्न शोध-ग्रन्थों, पुस्तकों एवं विभिन्न देशों के संविधानों में लिखे गए हैं, जैसे कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी भारतीय नागरिकों को विकास के लिए सभी प्रकार के अवसर समान रूप से मुहैया कराने और सामाजिक न्याय स्थापित करने की बात की गई है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 विधि के सामने समानता की पैरवी करता है व अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को कानूनन अवैध ठहराता है। केंद्र और राज्य सरकारों ने सामाजिक न्याय स्थापित करने के लिए वंचित वर्गों के लिए विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया है। भारतीय समाज में जन्मे विभिन्न महापुरुषों ने भी सामाजिक न्याय की कोशिश अपने-अपने तरीके से की है। लेकिन इतना सब होने के पश्चात भी समाज में सामाजिक न्याय व्यवहार में दिखाई नहीं देता है। छुआछूत, जातिगत उत्पीड़न, धार्मिक उन्माद जैसी घटनाएं आए दिन देखने और पढने को मिलती हैं।

 

संवैधानिक उपचारों को आमजन तक पहुंचाने, इन अधिकारों के प्रति जागृत करने, समाज में घट रही घटनाओं पर अपने विचार व्यक्त करने में एक कवि/लेखक भी अपनी भूमिका निभाता है। अपनी लेखनी के द्वारा वो समाज में हो रही ज्यादतियों का विरोध करता है। शोषित, पीड़ित के विचारों को अपनी कविताओं में स्थान देता है। हरियाणा के सोनीपत जिले के रोहणा गाँव में ऐसे ही एक कवि कृष्णचंद्र जी का जन्म 2 जून 1937 को हुआ। जिन्होंने स्वयं द्वारा अनुभव की गई एवम् समाज में घट रही घटनाओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया। कृष्णचंद्र जी स्वयं एक वंचित जाति से सम्बन्ध रखते हैं।

 

इन्होंने बचपन से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। 23 वर्ष की उम्र में अध्यापन को अपना कर्म क्षेत्र बना लिया था। रोहणा जी ने अध्यापन और लेखन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। कृष्णचंद्र जी की अधिकतर रचनाएं मुक्तक शैली की हैं। उन्होंने संत कबीरदास और सेठ ताराचंद किस्सों की रचना की है। डॉ. भीमराव आंबेडकर व ज्योतिराव फूले पर इन्होने समाज को जागृत करती बहुत सी रागनियां लिखी हैं।

 

इन्होंने अनेक फुटकल रागनियों की भी रचना की, जिसमें पर्यावरण, स्त्री-शिक्षा, आपसी भाईचारा, समता, अंधविश्वास, देश प्रेम की भावना, गुरु महत्ता, व्यवहार विमर्श, सामाजिक चेतना और शिक्षा की ललक आदि विषयों को आधार बनाया है। एक शिक्षक और कवि के रूप में इन्हें सरकार के कई उपक्रमों द्वारा सम्मानित भी किया गया। इनके किस्से ‘सेठ ताराचंद’ व ‘संत कबीर’ आकाशवाणी रोहतक से प्रसारित भी किये गए। (Social Justice and Caste Discourse)

 

कृष्णचंद्र जी ने वैसे तो प्रत्येक विषय पर अपनी लेखनी चलाई किन्तु समाज में शोषित, वंचित पर हो रहे अत्याचारों पर भी अपने विचार प्रस्तुत किये। समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए उन्होंने कई कालजयी रचनाएं रची। भारतीय समाज में जाति सामाजिक न्याय में सबसे बड़ी बाधा है। कवि कृष्णचंद्र ने जाति व्यवस्था को कृत्रिम, मानव-निर्मित और स्वार्थ से परिपूर्ण बताया है। वे मानते हैं कि जाति श्रमजीवियों ने नहीं बनाई। जाति उन्होंने बनाई जो श्रम साधनों पर कब्ज़ा कर मौज उड़ाना चाहते हैं। जाति पर कटाक्ष करते हुए कवि लिखते हैं –

 

जाति बड़ी कोई नहीं, हर इंसान समान।

गुण धर्म सम है सबके, सभी रूप भगवान।

 

रोहणा जी स्पष्ट करते हैं कि कोई भी जाति बड़ी नहीं है, सभी इंसान समान हैं। सभी के मूल गुण एक जैसे हैं। अगर जाति नामक धारणा का अस्तित्व वास्तव में होता तब गुण-धर्म में भी अंतर होता। जबकि गुण-धर्म में कहीं भी कोई अंतर दृष्टिगोचर नहीं होता है। रोहणा जी मानते हैं कि मनुष्यों में कोई अंतर नहीं है। सभी भगवान का रूप हैं।

 

कृष्णचंद्र जी जाति के घोर विरोधी हैं। वे कर्म की प्रधानता स्वीकार करते हैं। वे मानव के मूल्यांकन का आधार उसके द्वारा किये जाने वाले कार्य को मानते हैं। वे संत कबीरदास और संत रविदास जी के उदाहरण देते हुए लिखते हैं –

 

कर्म से बड़ा होत है, जाति से नहीं होय।

कबीर रविदास कौन थे, पीछे देखे कोय।

 

गुरु रविदास और कबीरदास के सद्कर्मों के समक्ष उनकी जाति कोई मायने नहीं रखती। कबीर जुलाहा और रैदास चमार होने के बावजूद पूरी दुनिया में पूजनीय हैं। उन्होंने मानव मात्र की समानता के विचार प्रकट किये। वे लगातार सामाजिक रूढ़ियों से संघर्ष करते रहे जिसके परिणाम-स्वरूप वे आज पूजनीय बन गए। (Social Justice and Caste Discourse)

 

जाति-पाति के भेद में फंसे सो मूढ़ गंवार।

सुख शांति कभी ना मिली, संतन किया विचार।

संतन किया विचार सभी हैं मानव भाई।

सभी से करो प्रेम इसमें सबकी भलाई।

 

कवि कृष्णचंद्र जी जाति-पाति के भ्रमजाल में फंसने वाले लोगों को मूढ़-गंवार की संज्ञा देते हैं। जो मानव जाति के भ्रम में फंस गया उसे कभी भी शांति नहीं मिल सकती है। देश-समाज जाति के कारण रसातल में जा रहा है। हमें सभी मानवों को एक समान समझना चाहिए और सबसे प्रेम करना चाहिए। इसी में सभी का भला छिपा हुआ है।

 

कृष्णचंद्र जी ने समाज को जागृत करने के लिए अपनी रचनाओं का प्रयोग किया है। उन्होंने वंचित समाज का इस देश को आजाद कराने और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान बताया है। उनका मानना है कि आज भारत देश जिस स्थिति पर है उसमें केवल कुछ लोगों का ही योगदान नहीं है, बल्कि सभी ने अपने हिस्से की लड़ाई लड़ी है। आजादी के आन्दोलन के दौरान वंचित समाज से कितने ही नेताओं ने आगे आकर अपने प्राणों को न्योछावर किया।

 

मातादीन भंगी, झलकारी बाई, बाबू मंगूराम आदि कितने ही लोगों ने आज़ादी के आन्दोलन को गति प्रदान की। डॉ. आंबेडकर ने सामाजिक बराबरी के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। आजादी के बाद भी लड़े गए अनेक मोर्चों पर गरीब परिवारों से आए सैनिकों ने देश की रक्षा की है। कवि कृष्णचंद्र जी निम्न पंक्तियों के द्वारा वंचित समुदाय का योगदान बताते हैं-

 

थारी गेलां रहे सदा, ये आजादी ल्यावण म्हं

आगे हमेशा रहे, गोळी छाती म्हं खावण म्हं

महाशय दयाचंद लागे, आजादी छंद बना गावण म्हं

कोहिमा का जीत्या मोरचा, नाम आगे आवण म्हं

आंबेडकर भारत रत्न बने, संविधान बनाए तै।

 

कवि कृष्णचंद्र जी मानते हैं कि देश समाज के हित में प्रत्येक मोर्चे पर वंचित समुदाय के लोग आगे रहे हैं। किन्तु उन्हें फिर भी वो अधिकार, वो सामाजिक बराबरी, वो सम्मान प्राप्त नहीं हुआ जिसके वे हकदार हैं।

 

कवि कृष्णचंद्र रोहणा जी ने सामाजिक न्याय के प्रणेता डॉ. बी. आर. आंबेडकर के जीवन और कार्यों को काव्य बद्ध किया। जिसको उन्होंने आंबेडकर प्रकाश का नाम दिया। अम्बेडकर प्रकाश के किस्से की एक रागनी की इन पंक्तियों में रोहणा जी लिखते हैं-

 

मानव को समझा ना मानव, पशु जैसा व्यवहार किया

इन गरीबां के ऊपर तै बहुत बड़ा अत्याचार किया                             *

हर तरह से पीछे राखे, बंद तरक्की का द्वार किया

बाबा साहब गरीबां के मसीहा बनके आए थे

भारी जुल्मों सितम सहके, ऊंची शिक्षा पाए थे

तुम भी शिक्षित बनो आगे बढ़ो जागे और जगाए थे

बाबा साहब ने जो भला किया जा सकता नहीं भुलाया रे।

 

रोहणा जी मानते हैं कि सामाजिक व्यवस्था में मानव को मानव नहीं समझा जाता है। उसके साथ पशु जैसा व्यवहार किया जाता है। ग़रीबों के ऊपर हमेशा से अत्याचार होते आए हैं। इनको विकास नहीं करने दिया गया। इनकी तरक्की के दरवाजे बंद रखे गए।

 

लेकिन डॉ. भीमराव आंबेडकर गरीब और वंचितों के लिए एक मसीहा बनकर आए थे। उन्होंने जीवन में बहुत समस्याओं का सामना करके उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। बाबा साहब चाहते थे कि वंचित समुदाय शिक्षा प्राप्त करके आगे बढ़े। बाबा साहब ने संविधान रचकर जो भला किया है उसको कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।

 

कृष्णचंद्र जी ने महात्मा ज्योतिराव फुले के जीवन और कार्यों को भी काव्यबद्ध किया है। अपनी एक रचना में वे लिखते हैं –

 

जोति फूले ने पढ़ लिख के, जुल्म मिटावण की सोची

मानव से मानव घृणा करे, कलंक हटावण की सोची

सामाजिक विद्रोह करके, गुलामी भगावण की सोची

सबका हक़ बराबर से, सम्मान दिलावण की सोची

गरीब जगावण की सोची, अपमान भी स्वीकार किया।

 

महात्मा ज्योतिराव फूले ने स्वयं शिक्षा प्राप्त की एवं उस शिक्षा का प्रयोग समाज से जुल्म को समाप्त करने में किया। मानव से मानव द्वारा घृणा के वे घोर विरोधी थे। समाज में छुआछूत जैसे कलंक की समाप्ति के लिए महात्मा फूले ने सामाजिक आन्दोलन भी किये। फूले जी मानते थे कि सभी का हक़ बराबर है। कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है।

 

सभी को समान रूप से सम्मान मिलना चाहिए। उन्होंने विद्यालयों की स्थापना की एवं महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर वंचित समुदायों में नई ऊर्जा का संचार किया। समाज में सुधार करने के कारण उन्हें स्वयं भी अपमान का सामना करना पड़ा था।

 

कवि कृष्णचंद्र जी समाज में फैली बुराईयों पर अपनी रागनियों के माध्यम से गहरी चोट करते हैं। वे ईमानदार और मेहनतकश समाज के समर्थक हैं। कवि कृष्णचंद्र द्वारा लिखा गया साहित्य हरियाणवी जन-जीवन को समझने का आसान तरीका है।

 

उनकी रचनाएं आमजन की बोली में लिखी गई हैं। जिससे मानवमात्र स्वयं का जुड़ाव महसूस करता है। अंत में कहा जा सकता है कि कृष्णचंद्र जी ने देश-समाज के प्रत्येक विषय पर रागनियाँ लिखी हैं किन्तु सामाजिक न्याय और जाति विमर्श भी उनकी रचनाओं का केंद्र बिंदु रहा है। (Social Justice and Caste Discourse)

 

सन्दर्भ –

  1. कवि कृष्णदास रोहणा ग्रंथावली, सं. डॉ. राजेन्द्र बडगूजर, अर्पित पब्लिकेसन्स, हरियाणा (2019)
  2. कवि कृष्णचन्द्र रोहणा ग्रंथावली, सं. डॉ. राजेन्द्र बडगूजर, अक्षरधाम प्रकाशन, हरियाणा (2012)

 

नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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