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सांची स्तूप: पांच फीट ऊंचा पत्थर का भिक्षापात्र. उसी में भिक्षा को मिलाना और बांटकर खाना | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान


 

सोचो, भिक्षु भिक्षुणी संघ ने धम्म प्रचार के लिए सहर्ष कितने कष्ट सहे होंगे. सम्राट अशोक द्वारा सांची का मुख्य स्तूप बनवाने के बाद वहां कई सभाकक्ष, भिक्षु आवास केंद्र और ध्यान कक्ष बनवाये. सदियों तक यह सिलसिला चलता रहा. हजारों भिक्षु यहां से प्रशिक्षण लेकर देश दुनिया में धम्म प्रचार के लिए जाते थे.

 

सांची पहाड़ी के मुख्य स्तूप के पास बड़ा भिक्षु आवास था, वहां आज भी पत्थर का एक बड़ा भिक्षापात्र रखा हुआ है.

इस पहाड़ी की ऊंचाई से हर दिन भिक्षु भिक्षुणियां पास के विदिशा (बेस नगर) में भिक्खाटन के लिए जाते थे. वे अपने अपने भिक्षा पात्रों में भोजन लाते और सभी पत्थर के इस बड़े भिक्षा पात्र में डालते थे. हर तरह का भोजन पात्र में मिलाया जाता था. फिर एक साथ बैठकर सभी भोजन करते थे.

आज के दौर में जब हम हर दिन भोजन के स्वाद, रस, वैरायटी के लिए इतने अधिक बेचैन, व्याकुल रहते हैं. उस दौर में जब लगभग सभी भिक्षु भिक्षुणियां समृद्ध राज परिवारों, ब्राह्मण और वणिक परिवारों से सारी सुख सुविधाएं त्याग कर आते थे. बुद्ध, धम्म और संघ के प्रति सम्मान और श्रद्धा के कारण संघ के कठोर विनय, नियम, अनुशासन पालन करते थे. सोचो, धम्म प्रचार के लिए सहर्ष कितने कष्ट सहे होंगे.

 

धम्म प्रचार में संघ के त्याग, तप और महान योगदान को नमन.

 

       सबका मंगल हो …. सभी प्राणी सुखी हो

 

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