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मोदी सरकार से औपचारिक पत्र मिलने के बाद खाली हो रहा सिंघु बॉर्डर… पढ़िए सालभर में किन पड़ावों से होकर गुजरा किसान आंदोलन | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | ऑनलाइन बुलेटिन | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों नए कृषि कानून वापस लेने व माफी मांगने के बाद किसान अपनी विजय पताका फहराकर अपने खेतों की ओर लौटने लगे हैं। मोदी सरकार से औपचारिक पत्र मिलने के बाद किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही करीब एक साल से अधिक समय से चले आ रहे वृहद किसान आंदोलन का सफल पटाक्षेप हो गया। आइए ऑनलाइन बुलेटिन (Onlinebulletin.in) में सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं कि किसान आंदोलन में कब-कब क्या हुआ। कब इसमें अहम मोड़ आए और कहां से इसने सफलता का रुख अख्तियार किया… विस्तृत खबर ऑनलाइन बुलेटिन के पाठकों के लिए। पढ़ें खास खबर ….

 

26 नवंबर, 2020

 

यही वह तारीख थी जब किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन शुरू किया। हालांकि इसकी भूमिका काफी पहले से बननी शुरू हो गई थी। 4 सितंबर को सरकार ने संसद में किसान कानूनों संबंधी ऑर्डिनेंस पेश किया। 17 सितंबर को यह ऑर्डिनेंस लोकसभा में पास हो गया। इसके बाद 20 सितंबर को राज्यसभा में भी इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। इसके बाद ही देशभर में किसान मुखर होने लगे। 24 सितंबर को पंजाब में तीन दिन के लिए रेल रोको आंदोलन शुरू हुआ। वहीं 25 सितंबर को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी की पुकार देशभर के किसान दिल्ली के लिए निकल पड़े। उसी साल 25 नवंबर को देशभर में नए किसान कानूनों का विरोध शुरू हो गया। पंजाब और हरियणा में दिल्ली चलो मूवमेंट का नारा दिया गया।

 

28 नवंबर, 2020

 

इस तारीख को गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों के साथ बातचीत करने का ऑफर दिया। हालांकि किसानों ने उनकी बात मानने से साफ इनकार कर दिया और जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन की बात कही। 29 नवंबर को प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने किसानों से वादा किया था, लेकिन केवल उनकी सरकार ने वादा पूरा किया।

 

03 दिसंबर, 2020

 

तीन दिसंबर को सरकार और किसानों के बीच पहले दौर की बातचीत हुई। हालांकि इस बातचीत के दौरान किसी तरह का कोई परिणाम नहीं निकल सका। इसके बाद पांच दिसंबर को मोदी सरकार की किसानों के साथ दूसरे दौर की बातचीत हुई। इसमें भी किसी तरह का कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका। यहां तक कि किसानों ने बातचीत के दौरान सरकार की तरफ से दिया गया खाना भी नहीं खाया और खुद से लाया खाया जमीन पर बैठकर खाया।

 

08 दिसंबर, 2020

 

कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने भारत बंद बुलाया। अन्य राज्यों के किसानों ने भी भारत बंद को अपना समर्थन दिया। इसके बाद नौ दिसंबर को किसान नेताओं ने कृषि कानूनों में सुधार के मोदी सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद किसानों ने कृषि कानूनों को वापस न लिए जाने तक धरने की बात कही। 11 दिसंबर को भारतीय किसान यूनियन ने तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वहीं 13 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने किसान आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग प्रायोजित बताया। साथ ही कहा कि सरकार किसानों से बातचीत के लिए तैयार है।

 

30 दिसंबर, 2020

 

किसानों और मोदी सरकार के बीच बातचीत को कुछ दिशा मिली। सरकार किसानों को पराली जलाने पर पेनाल्टी और इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 में सुधार के लिए सहमत हुई। इससे पहले 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह कृषि कानूनों पर उपजे गतिरोध को देखते हुए एक पैनल बना सकती है, जिसमें किसान और सरकार दोनों के प्रतिनिधि रहेंगे। वहीं 21 दिसंबर को किसानों ने सभी धरना स्थलों पर एक दिन की भूख हड़ताल रखी।

 

26 जनवरी, 2021

 

किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड बुलाई थी। इस दौरान हजारों प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ मुठभेड़ हो गई। परेड के दौरान सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर के किसानों ने अपना रूट बदल दिया और दिल्ली आईटीओ व लाल किला का रुख कर लिया। यहां पर प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज हुआ। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। 28 जनवरी को दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर भी तनाव फैला। इसकी वजह थी पड़ोसी राज्य यूपी के गाजियाबाद के जिला प्रशासन का बॉर्डर खाली करने का आदेश।

 

फरवरी 2021

 

सरकार ने सेलेब्रिटीज और अन्य लोगों को किसानों के मुद्दे पर टिप्पणी करने को लताड़ा। सरकार ने इन लोगों को गलत और गैरजिम्मेदार बताया। यह सब तब हुआ जब पॉप स्टार रिहाना और क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग वगैरह ने किसान प्रदर्शनों पर अपनी राय रखी। इसके बाद पांच फरवरी को दिल्ली साइबर क्राइम सेल ने किसान विरोधों पर टूलकिट के इस्तेमाल की एफआईआर दर्ज की। छह फरवरी को आंदोलन कर रहे किसानों ने देशभर में चक्का जाम किया। यह चक्का जाम दोपहर 12 से शाम 3 बजे तक किया गया। नौ फरवरी को पंजाबी अभिनेता और एक्टिविस्ट दीप सिंधू के खिलाफ गणतंत्र दिवस हिंसा मामले में गिरफ्तार किया।

 

मार्च, अप्रैल, मई 2021

 

पांच मार्च 2021 को पंजाब विधानसभा ने एक रिजॉल्यूशन पास किया। इसमें उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को पंजाब में लागू न होने देने की बात कही। साथ ही एमएसपी बेस्ड सिस्टम फॉलो करने की बात कही। इससे पहले दो मार्च को शिरोमणि अकाली दल चीफ सुखबीर सिंह बादल व अन्य पार्टी नेताओं को पंजाब विधानसभा का घेराव करने के लिए जाते वक्त गिरफ्तार कर लिया गया। 06 मार्च को दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे हो गए। सिंघु बॉर्डर पर लाए गए कुछ ट्रैक्टर-ट्रॉली खेती के लिए पंजाब वापस लौटे। किसानों ने बांस से यहां अपने लिए ठिकाना बनाया। 15 अप्रैल को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री मोदी को किसानों से बातचीत बहाल करने के लिए चिट्ठी लिखी। 27 मई को किसानों ने काला दिवस के रूप में मनाया और सरकार का पुतला दहन किया।

 

जून – जुलाई – अगस्त 2021

 

पांच जून को किसानों ने संपूर्ण क्रांतिकारी दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया। वहीं 26 मार्च को कृषि कानूनों के विरोध के सात महीने पूरे होने पर किसानों ने दिल्ली तक मार्च किया। संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि किसानों को विभिन्न राज्यों में रोका गया। जुलाई में जब मॉनसून सत्र शुरू हुआ तो किसानों ने पार्लियामेंट हाउस के करीब अपना भी मॉनसून सत्र शुरू कर दिया। इस दौरान किसानों ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया। सात अगस्त 2021 को विपक्ष के 14 नेताओं ने सदन में मुलाकात की। इसके बाद इन सभी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहे किसान संसद में जाने का फैसला किया। 28 अगस्त को हरियाणा के करनाल में किसानों के ऊपर लाठी चार्ज हुआ और कई किसान घायल हुए।

 

सितंबर, अक्टूबर, नवंबर 2021

 

यूपी चुनावों को करीब देखकर किसानों ने यहां अपना अपना मूवमेंट शुरू किया। मुजफ्फरनगर में बड़ी संख्या में लोग जुटे। इसके बाद 7 से 9 नवंबर के बीच किसान करनाल पहुंचे। 11 सितंबर को किसान और करनाल जिला प्रशासन के बीच गतिरोध खत्म हुआ। इसके बाद तमाम प्रतिरोधों-अवरोधों के बीच 19 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया।

 

19 नवंबर, 2021 के बाद

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा व माफी मांगने के बाद किसान नेता राकैश टिकैत ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात का भरोसा नहीं है। जब तक कृषि कानून दोनों सदनों से पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए वापस नहीं ले लिए जाते, किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा। इसके बाद किसानों ने लखनऊ में 20 नवंबर को किसान महापंचायत की। इसमें किसानों ने एमएसपी कानून बनाए जाने तक घर लौटने से इनकार कर दिया।

 

26 नवंबर, 2021

 

इस दिन किसान आंदोलन का एक साल पूरा हुआ था। दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन के एक साल पूरा होने का बाकायदा जश्न भी मनाया गया।

 

27 नवंबर, 2021

 

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बड़ा बयान आया। नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि पराली जलाना आपराधिक नहीं होगा। इकसे बाद किसानों 29 नवंबर को दिल्ली में प्रस्तावित ट्रैक्टर मार्च नहीं करने का फैसला लिया।

 

29 नवंबर, 2021

 

यह संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन था। इसी दिन कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास किया गया। बिल पहले लोकसभा में पेश हुआ और उसके बाद राज्यसभा में। दोनों सदनों में यह बिल हंगामे के बीच पास हुआ।

 

07 दिसंबर, 2021

 

किसानों से सरकार से मिले ड्राफ्ट की कुछ शर्तों पर असहमति जताई। इसके बाद किसानों ने 5 सदस्यीय समिति बनाई। 8 दिसंबर को सरकार को संसोधित प्रस्ताव दिया गया। इस समझौते के मुताबिक सभी राज्य सरकारों द्वारा पंजाब की तर्ज पर मृत किसानों को मुआवजा देने, एमएसपी पर कमेटी बनाने, जिसमें किसान संगठन समेत संबंधित घटकों के शामिल होने, और किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की बात कही गई।

 

09 दिसंबर, 2021

 

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने किसानों को संशोधित सहमति पत्र सौंपा। संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में इसे स्वीकृति मिल गई। किसानों से इसे ऐतिहासिक जीत बताया। साथ ही किसान आंदोलन समाप्त करने की भी घोषणा की गई।

 

11 दिसंबर, 2021

 

दिल्ली बॉर्डर पर जमे किसानों ने अपना डेरा उखाड़ना शुरू कर दिया। सभी किसान अपने-अपने खेतों की ओर वापस जा रहे हैं।


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